फिर से मुझे तलाश है



श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘रेत के रिश्ते’ 
की बत्तीसवीं कविता 

यह कविता संग्रह
श्री पं. भवानी प्रसादजी मिश्र को 
समर्पित किया गया है।


फिर से मुझे तलाश है

खुद सूरज ने मान लिया है,
नहीं हुआ उजियारा
इससे तो अच्छा था यारों,
गैरों का अँधियारा!

भला-बुरा जो भी होता था,
तम में तो होता था,
सुर-बेसुर जो भी रोता था,
गम में तो रोता था!
   
पिछली मावस के खाते में,
अपना काजल डाले,
उस सूरज को सूरज कैसे
मानें धरतीवाले।

धरती कोई गगन नहीं है,
कोई भी चमका ले,
ऐरे-गैरे नक्षत्रों से,
अपना काम चला ले!

यहाँ प्राण बोना पड़ता है,
तब लगती है लाली,
ऋतुएँ नहीं बदल पाती हैं,
बातें खाली-माली!

कण-कण फिर अँधियारे में है,
कण-कण पुनः उदास है,
किसी अजन्मी ज्योति-किरण की,
फिर से मुझे तलाश है!

सम्भवतः फिर ऊषा आये,
सम्भवतः फिर रात ढले,
इसी भूमिका की खातिर,
फिर नन्हा-सा दीप जले!
-----
 


रेत के रिश्ते - कविता संग्रह
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - साँची प्रकाशन, बाल विहार, हमीदिया रोड़, भोपाल
प्रथम संस्करण - नवम्बर 1980
मूल्य - बीस रुपये
मुद्रक - चन्द्रा प्रिण्टर्स, भोपाल
-----
 
 

 






















7 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (13-10-2021) को चर्चा मंच         "फिर से मुझे तलाश है"    (चर्चा अंक-4216)     पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    --
    श्री दुर्गाष्टमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

    ReplyDelete
    Replies
    1. चयन के लिए बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

      Delete
  2. हमेशा की तरह बहुत ही सराहनीय प्रस्तुति

    ReplyDelete
    Replies
    1. ब्‍लॉग पर आने के लिए और टिप्पणी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

      Delete
  3. बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
    Replies
    1. टिप्पणी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

      Delete
  4. टिप्पणी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.