मनक मानवी

श्री बालकवि बैरागी के, मालवी कविता संग्रह 
‘चटक म्हारा चम्पा’ की बीसवीं कविता

यह संग्रह श्री नरेन्द्र सिंह तोमर को समर्पित किया गया है।






मनक मानवी

मनक मानवी जटाँ तलक है तरसा मनकाचार का
कोई वतावो कसरूँ गऊँ म्हूँ गीत मुहब्बत प्यार का

म्हारे भी एक लूणी वरण्‍यो नरम नरोगो जिवड़ो है
थी हाँची न्‍हीं मानोगा पण म्हारे भी एक पिवड़ो है
आधी-आधी रात म्हने भी मीठा सपना आवे है
म्हारी गली में भी कोई ग्वालणा रसिया रोज हुणावे है
म्हारी बारी में भी चन्दो चौड़े धाले आवे है
पीपल कोई म्हारा नाम ती रोज पूजवा जावे है
तुलसी क्‍यारे रोज हाँझ काँ दिवलो म्हारा नाम को
मेली ने कोई फल पावे है सौरमजी का स्नान को
अतरा पर भी दरसन दुरलभ भगती ने भरतार का
कोई वतावो कसरूँ गऊँ म्हूँ गीत मुहब्बत प्यार का
मनक मानवी जटा तलक है

म्हारे जसा हजाराँ हिवड़ा आज अटे लाचार है
वात-वात में ऊँची भींताँ पगॉं-पाँवड़े त्यार है
मनक-मनक ती मिलवा चाल्यो मनक फरीग्यो झट आड़ो
तोक्यो पग नीचे न्‍हीं आवे जण पेलई खुद जा खाड़ो
बरबरता म्हारा गीताँ में दीखे आपने लाय है
लाय-वाय व्हा कोन्ही वीरा फकत कलम की हाय है
छेर छेकला रेला देखूँ कोन्ही म्हारो काम यो
निन्‍दक को तो छोई की जो पण कोन्‍ही म्हारो नाम यो
कड़वा फल पाँती में आया म्हारे अणी संसार का
कोई वतावों कसरू' गऊ' म्हूं गीत मुहब्बत प्यार का

म्‍हारी ऑंखॉं ती देखे काई आज अणी संसार ने
एक बाप का जाया उपन्‍या भर्‌या पुर्‌या परिवार ने
एक जमी पर पग न्‍हीं मेले, मेले तो कुम्‍हलावे रे
एक जमीं पर पेट लबूरे पण नही पेट भरावे रे
आज पसीना का पणघट पर तरसाँ मरे मजूूर है
पापण पूँजी पाणी पी गी पण तरसी भरपूर है
चाँदी की बाँदी दुनियाँ का माटी लाख करोड़ है
अणे रँडापो अई न्‍हीं जावे लागी री या होड़ है
जादव-जादव लेई डूब्या जद जादूड़ा की द्वारका
कोई बतावो कसरूँ गऊँ म्‍हूँ गीत मुहब्बत प्यार का
मनक मानवी जटा तलक है

जद भूखा करसाण दिखे ने दिखे वाँ की डावड़ियाँ
जद परबस मजदूर दिखे ने दिखे वाँ की कामणियाँ
जदी पसीना का समदर पर सोना को सूरज दीखे
जदी आरती के उजियारे माटी की मूरत दीखे
दानतहीणपणो कंगाली और गुलामी लाचारी
भूख गरीबी जोर जुलम और दूज दिखे या हत्यारी
म्हारी कलम को जी घबरावे धरम कठे ईमान कठे
ओ भाटा का भक्ताँ बोलो मनक कठे भगवान कठे
बोलो-बोलो थाने सोगन है अपणा अवतार का
कोई वतावों कसरूँ गऊँ म्हूँ गीत मुह॒व्बत प्यार का
मनक मानवी जटा तलक है

चार घड़ी के बलेजगत में जणे मोकल्यो राम ने
मनक जात की मुश्किल करदी वणी देंत का काम ने
छेड़ करे हगतां दूजा का नवरी आँख वतावे रे
काम करम सब करे काजर्‌या पर उजरो इतरावे रे
कतरो मोटो वणे आपमें यो कतरो पोमावे रे
जीवन का आधार घात में यो बारूद विछाबे रे
नजर पराया जोबन पर ने नजर पराई थारी में
मनकपणाँ का मुकुट लुटईग्या मनकाँ की रखवारी में
कारा करद्या जदी मनक ने बागा वार तेवार का
कोई वतावों कसरूँ गऊँ म्हूँ गीत मुहब्बत प्यार का
मनक मानवी जटा तलक है

आधी-आधी रात म्हूँ भी जागू हूँ ने रोऊ हूॅं
याद कणा कई आवे है ने भरी जवानी खोऊ हूँ
चाँद म्हने भी याद देवाड़े बालपणा की प्रीत की
नौलख तारा सौगन दे है म्हने रसीला गीत की
मन तो म्हारो भी रोवे के गीत लिखूँ म्हूँ प्यार का
पणघट जाती पणिहारी का नवा-नवा सिणगार का
पण जद ऐरे मेरे देखूँ हपना हगरा टूटी जा
आधी राते हाय कणी की धीरज म्हारो लूटी जा
लाख नटे जिवड़ो पण फूटे गीत राड़-तकरार का
कोई वतावो कसरूँ गऊँ म्हूँ गीत मुहब्बत प्यार का
मनक मानवी जटा तलक है

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संग्रह के ब्यौरे 
चटक म्हारा चम्पा (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज प्रकाशन, 4 हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
मूल्य - 20 रुपये
चित्रांकन - डॉ. विष्णु भटनागर
प्रकाशन वर्ष - 1983
कॉपी राइट - बालकवि बैरागी
मुद्रक - विद्या ट्रेडर्स, उज्जैन




यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।


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