सेवादल में आवो रे



श्री बालकवि बैरागी के पाँचवें काव्य संग्रह 
         ‘गौरव गीत’ का छब्बीसवाँ/अन्तिम गीत

.....मैं काँग्रेस के मंच से हिन्दी मंच पर आया हूँ। सो, मैंने उस महान् संस्था के उपकार को नहीं भूलना चाहिये। मेरी नैतिकता मुझे इसके लिये हमेशा आगाह करती रहती है। .....मुझे लोकप्रियता देने में इन गीतों का बहुत बड़ा योगदान है। पूरे देश के आर-पार मेरा एक विशाल परिवार इन गीतों ने तैयार किया है। .......न इनका कोई साहित्यिक मूल्य है न इनमें कोई साहित्यिक बात ही है। फिर भी ये पुस्तकाकार छपे हैं। .....मेरे लिये यह जरूरी था कि इनको छपा कर आप तक पहुँचाऊँ। 


सेवादल में आवो रे
झाबुआ जिले के भीली लोक गीत ‘अंबुवा वन में जाणो छे’ की लोक धुन पर आधारित मालवी गीत


                                ओ रे जवानाँ! ओ रे जुझारा!, मायड़ली का प्यारा रे
                                आवो रे आवो सेवादल में, सेवादल में आवो रे

- 1 -

                                न्यारा-न्यारा मज्ज्ब हे ने, न्यारी-न्यारी बोली है
                                एक बगीचा का फुलड़ा जस्सी, या अलबेली टोली है
                                बारह मास बसन्त बिराजे, एसो फागण लावो रे
                                                        आवो रे आवो सेवादल में.....

- 2 -

                                एक सरोवर की सब लेहराँ, एक गगन का तारा है
                                एक बजट्टी का सब मोती, एक जामण का प्यारा है
                                अम्मर एऽको और अमर वे, अस्सा गीत गुँजावो रे
                                                        आवो रे आवो सेवादल में.....

- 3 -

                                काम निरालो खाँधे आयो, आखो देश बणाणों है
                                दन-दन जावे ऊमर व्हाला, माँ को कर्ज चुकाणो है
                                दूध पियो जणी मायड़ली को, वणको नाम बढ़ावो रे
                                                        आवो रे आवो सेवादल में.....
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गौरव गीत - काँग्रेस सेवादल के लिए रचित गीतों का संग्रह
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - पिया प्रकाशन, मनासा (म. प्र.)
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन
कॉपी राइट - ‘कवि’ (बालकवि बैरागी)
प्रथम संस्करण - 1100 प्रतियाँ,
प्रकाशन वर्ष - 1966
मूल्य - 1.50 रुपये
मुद्रक - रतनलाल जैन,
पंचशील प्रिण्टिंग प्रेस, मनासा (म. प्र.) 
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यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।



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