यह मशाल है आजादी की



श्री बालकवि बैरागी के पाँचवें काव्य संग्रह 
         ‘गौरव गीत’ का सोलहवाँ गीत

.....मैं काँग्रेस के मंच से हिन्दी मंच पर आया हूँ। सो, मैंने उस महान् संस्था के उपकार को नहीं भूलना चाहिये। मेरी नैतिकता मुझे इसके लिये हमेशा आगाह करती रहती है। .....मुझे लोकप्रियता देने में इन गीतों का बहुत बड़ा योगदान है। पूरे देश के आर-पार मेरा एक विशाल परिवार इन गीतों ने तैयार किया है। .......न इनका कोई साहित्यिक मूल्य है न इनमें कोई साहित्यिक बात ही है। फिर भी ये पुस्तकाकार छपे हैं। .....मेरे लिये यह जरूरी था कि इनको छपा कर आप तक पहुँचाऊँ। 

यह मशाल है आजादी की

                                यह मशाल है आजादी की
                                काँग्रेस के आदर्शों की
                                वीर जवाहर की
                                गाँधी की
                                                यह मशाल है आजादी की.....

- 1 -

                                बलिदानों की याद दिलाती
                                मेहनत का सन्देस सुनाती
                                अमर तिरंगे की छाया में
                                घूम रही है युग की थाती
                                इसे नहीं परवा तूफाँ की
                                        इसे नहीं परवा आँधी की
                                                यह मशाल है आजादी की.....

- 2 -

                                इसको थामो नये जवानों
                                मौसम के तेवर पहचानो
                                करो-मरो की बेला आई
                                एक बार फिर सीना तानो
                                        खून-पसीने की ऋतुएँ हैं
                                        नहीं रहीं सोने-चाँदी की
                                                यह मशाल है आजादी की.....

- 3 -

                                आओ साथ हमारे आओ
                                सारे वाद-विवाद भुलाओ
                                सेवादल का वेश पहिन कर
                                इतिहासों का कर्ज चुकाओ
                                        उठो! हमारे नव सपनों पर
                                        घटा उठी है बरबादी की
                                                यह मशाल है आजादी की.....

- 4 -

                                सतत् बढ़ेगी अब यह टोली
                                ओ! हम-ऊमर, ओ! हमजोली
                                तू भी आ जा दीवानों में
                                फसल उगायें, खायें गोली
                                        सिवा हमारे कौन करेगा
                                        रखवाली इस आजादी की
                                                यह मशाल है आजादी की.....
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‘गौरव गीत’ - भूमिका, सन्देश, कवि-कथन, जानकारियाँ यहाँ पढ़िए।

‘गौरव गीत’ का पन्द्रहवाँ गीत ‘त्यौहार है’ यहाँ पढ़िए

‘गौरव गीत’ का सत्रहवाँ गीत ‘ज्योति जले’ यहाँ पढ़िए

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गौरव गीत - काँग्रेस सेवादल के लिए रचित गीतों का संग्रह
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - पिया प्रकाशन, मनासा (म. प्र.)
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन
कॉपी राइट - ‘कवि’ (बालकवि बैरागी)
प्रथम संस्करण - 1100 प्रतियाँ,
प्रकाशन वर्ष - 1966
मूल्य - 1.50 रुपये
मुद्रक - रतनलाल जैन,
पंचशील प्रिण्टिंग प्रेस, मनासा (म. प्र.) 
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यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।



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