बादरवा अईग्‍या

श्री बालकवि बैरागी के, मालवी कविता संग्रह 
‘चटक म्हारा चम्पा’ की दसवीं

यह संग्रह श्री नरेन्द्र सिंह तोमर को समर्पित किया गया है।









बादरवा अईग्या

बादरवा अईग्‍या
अल्‍या देखो बादरवा अईग्‍या
दादा बादरवा अईग्‍या

देखो-देखो बिरहण की ऊँची-ऊँची मेड़ी का
लटक्या-लटक्या माथा पे लटालूम छई ग्या
बादरवा अईग्या
देखो बादरवा अईग्या

पी ने आया समदर को पाणी खारो-खारो
जाणा कटई ती ई रंग लाया कारो
ऊगमणे-आतमणे, लंकऊ-धरउ ती
आया ने आता ईं ने कर द्ययो अंधारो
भूखा आठ महिना का टूट्या जो टटकी ने
बरबरता सूरज ने चौड़े धाले खईग्या
ई बादरवा अईग्या
अल्या बादरवा अइग्या

रीता गगन में भरईग्यो देखो मेरो
मेरा में लागीर्‌यो विजरी को फेरो
अछन-अछन इतरावे डील में नही मावे
गूँजई र्‌या घूजई र्‌या इन्दर को डेरो
पचरंगी पागाँ ने देखी ने बागाँ में
सतरंगी चूूूनर और लेहर्‌या लेहरईग्या
बादरवा अईग्या

आखाऽई गगन पे अणा की बपोती
(पण) रम्‍मा-झम्मा रोरीर॒या गोरा-गोरा मोती
रीझीग्या-भीजीग्या मोर्‌या ने मोरनी
गावे म्हारो मालवो ने नाचे हाड़ोती
हूना-हूना खेताँ की हूूनी-हूनी मेड़ाँ पर
गरबीली गोर्‌याँ का मेरा भरइग्या
बादरबा अईग्या

कतरई दनॉं में या पुरवा आई पामणी
रसिया गवाया ने ऋतु अई हावणी
डावड्याँ ने बावड्याँ पर कजरी उगेरी
हींचा पे हींची र॒या कन्‍ताँ ने कामणी
देखो म्हारी बिरहण की काँकड़ली आँखड़ल्याँ
आली-आली लागे पण आँसू हुकईग्या
ई बादरवा अईग्या

कंगाल नारा भी डील में नही मई र्‌या
नखरारी नद्यॉं का जोबन पोमई र्‌या
बोली री टींटोड़ी राँभी र्‌या वाछरू 
डाबरा में डेंड़का भी बारामासी गइ र्‌या
आखी भरई गी व्हा तरसी तरई भी
नागा पूगा सरवर का अंग गदरईग्या
बादरवा अईग्या

लाखाँ- करोड़ाँ की आसा ई बादरा
अन्न-धन्न लछमी की भाषा ई बादरा
घरती ने धरती का जाया का गोठी
घर-घर बँटावे पतासाँ ई बादरा
राव-रंक रावरे
छईग्यो उछाव रे
मेहनत का रंग में हगरा रंगईग्या
बादरवा अईग्या

जोतईगी हामदां ने बलद्या  डकार्‌या
(तो) भाभी आड़ी नारी ने दादा खँखार्‌या
नेणा ने सेणा में बात करी मन की
बन्द कर्‌या बारणा ने बन्द करी बार्‌याँ
भोरा-भोरा भाभी का गोरा-गोरा हाथाँ ती
कारा-कारा खेतों में मोती ववईग्या
बादरवा अईग्या
अल्या बादरवा अईग्या

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संग्रह के ब्यौरे 
चटक म्हारा चम्पा (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज प्रकाशन, 4 हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
मूल्य - 20 रुपये
चित्रांकन - डॉ. विष्णु भटनागर
प्रकाशन वर्ष - 1983
कॉपी राइट - बालकवि बैरागी
मुद्रक - विद्या ट्रेडर्स, उज्जैन




यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।

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