पँखेरू

  


श्री बालकवि बैरागी के, मालवी कविता संग्रह 
‘चटक म्हारा चम्पा’ की तीसरी कविता

यह संग्रह श्री नरेन्द्र सिंह तोमर को समर्पित किया गया है।





पँखेरू


गोफण की वाताँ मान लो रे वीर
उड़ी ने चल्या जावो पेले पार
म्हारा पंछीड़ा रे राज
आजो म्हारे घरे वणी ने पामणा

चुगता पे भाटो फेंकणों रे वीर
कोन्ही म्हारा देसड़ला की रीत
म्हारा पंछीड़ा रे राज
आजो म्हारे घरे वणी ने पमणा

पियू ने पसीनो ने मेवला ने द्यो अमरत पाणी, 
रे पंखेर्‌
मेवला ने द्यो अमरत पाणी
मेंहदीड़ा हाथॉं में छाल्या पड्या जदी
धरती की माँग भराणी 
रे पंखेरू
या मोतियाँ से माँग भराणी
मोती चुगो मत माँग का रे वीर
लागेगा सुहागण का श्राप
म्हारा पंछीड़ा रे राज
आजो म्हारे घरे वणी ने पामणा
गोफण की वाताँ मान लो रे वीर

सासरिया का लोग रसीला ने
चूनर म्हारी झीणी
रे पंखेरू
चूनर म्‍हारी झीणी
रपसी कोई न्‍ही म्‍हारा अंग पर
कारीगर की छीणी
रे पंखेरू
कारीगर की छीणी
डागरा मे गोफण फेरतॉं रे वीर 
लागे म्हाने पंथीड़ा की लाज
म्हारा पछीड़ा रे राज
आजो म्हारे घरे वणी ने पामणा
गोफण की वाताँ मानलो रे वीर

ऊँचा उड़ो ने आतमणे नारो
हरियल पाग हुकई री 
पंखेरू
लीली-लीली पाग हुकई री
होकड़ली खेताँ में रमताँँ-रमताँ
बालम ने बेहकई री
रे पंखेरू
थारा जीजा सा ने बेहकई री
जाओ-जाओ चुगो वणी खेत में रे वीर
लेई जाओ थाँ का सोई परिवार
म्हारा पंछीड़ा रे वीर
आजो म्हारे घरे वणी ने पामणा
गोफण की वाताँ मानलो रे वीर

बेरन की आँखाँ में चाेंच गड़ाजे ने
बेन्याँ बई को बदलो ली 
रे पंखेरू
जीजी बई को बदलो लीजे
मारवणी रोवे खेताँ में ढोला
बालम ने कई दीजे,
 रे पंखेरू
थारा जीजा सा ने केई दीजे
सोना मढ़ऊ थारी चोंच म्हारा वीर
दूँगा थने सेरा ने सरपाव
म्हारा पंछीड़ा रे राज
आजो म्हारे घरे वणी ने पामणा
गोफण की वाताँ मान लो रे वीर

गोफण म्हारी जनम की गोठण
तू म्हारो परबत वीरो
रे कन्हैया
तू म्हारो परबत वीरो 
एक-एक भाटो भारत माँ को
लाख रुपैया को हीरो 
रे पंखेर्‌
लाख रुपैया को हीरो
गोठण ने बाँध्या हाथ म्हारा वीर
हीरा तो वीरा का सिणगार
म्हारा पंछीड़ा रे राज
आजो म्हारे घरे वणी ने पामणा
गोफण की वाताँ मान लो रे वीर

तू भी आवजे ने भावज ने लारे लाजे
रे कन्हैया 
सुहागण ने लाराँ लाजे
माणक- मोतीड़ा की खीर वणाऊ'
तू बेन्याँ बई का हाथाँ से खाजे
 रे पंखेरू
जीजी बई का हाथाँ से खाजे
भावज ने दूँगा काँचरी रे वीर
लागी थाँसे पालणा की आस
म्हारा पंछीडा रे राज
आजो म्हारे घरे वणी ने पामणा
गोफण की वाताँ मान लो रे वीर

सास लड़ेगा ने लोग हँसेगा
तू जो अड़यो स्वारथ पे 
पंखेरू वीरा
तू जो अड्यो स्वारथ पे
डीले न्‍हीं कमावो ने लोगाँ को खावो तो
दाग लगे ओ ऽ भारत पे
पंखेरू
यो तो दाग लगे ओ ऽ भारत पे
वाताँ जगत की जाणी ले रो वीर
उड़ी ने चल्या जाओ पेले पार
म्हारा पंछीड़ा रे राज 
वणी ने आजो म्हारे घरे वणी ने पामणा 
गोफण की वाता मान लो रे वीर

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संग्रह के ब्यौरे 
चटक म्हारा चम्पा (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज प्रकाशन, 4 हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
मूल्य - 20 रुपये
चित्रांकन - डॉ. विष्णु भटनागर
प्रकाशन वर्ष - 1983
कॉपी राइट - बालकवि बैरागी
मुद्रक - विद्या ट्रेडर्स, उज्जैन




यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।

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