ये मेरी अधमरी ऊँगलियाँ

श्री बालकवि बैरागी
के प्रथम काव्य संग्रह ‘दरद दीवानी’ की सैंतीसवीं/अन्तिम कविता




ये मेरी अधमरी ऊँगलियाँ, जो भी आखर लिख देंगी

आनेवाली सदियाँ उनको, सदियों तक दुहराएँगी


आज भले बदनामी देकर पियो न इनकी हाला तुम

आज भले ही इन गीतों को दे दो देस निकाला तुम

लेकिन कल यौवन गाएगा इनको चंग-मृदंगों पर

इन गीतों के बोल गुदेंगे बालाओं के अंगों पर

अरबों अधर इन्हें चूमेंगे, सेजों पर सहलाएँगे

मधुवेला में रूठे जोड़े इनकी कसमें खाएँगे


ये मेरी निर्धन अंजुलियाँ जो भी अर्पण कर देंगी

संस्कृतियों की नदियाँ उनसे युग संगीत चुराएँगी

आने वाल सदियाँ.....


ये मानव की वाणी बन कर करुणा घट छलकाएँगे

ये पत्थर को पानी करके युग की प्यास बुझाएँगे

इनके बिना अधूरी ही हर पूजा मानी जाएगी

मन्दिर मस्जिद और गिरजों में दुनिया इनको गाएगी

ये धरती के राजदूत बन अम्बर पर छा जाएँगे

ये वन्दन से विमुख रहेंगे फिर भी पूजे जाएँगे


ये मेरी आकुल अभिलाषा जा भी चिह्न बना देगी

आने वाली पीढ़ी अपने तीरथ वहीं बनाएगी

आने वाली सदियाँ...


धान उगेगा इनको सुनकर ये ही फसल पकाएँगे

मेड़-मेड़ पर पंख-पखेरू इनको गाते आएँगे

ये गूँजेंगे खलिहानों में माँदल और इकतारों पर

ये ही फागुन बरसाएँगे इतराते पतझारों पर

ये कुटिया के सजग सहोदर सचमुच महल झुकाएँगे

श्रम की डोली काँधे लेकर आँगन-अँगन जाएँगे


ये मेरी अनपुजी साधना जो भी मेंहदी रच देगी

युग लछमी के चन्द्रभाल पर वो कुंकुंम बन जाएगी

आने वाली सदियाँ उनको.....


ये सौरभ का कर्जा देंगे, मधु-कुंजो की गलियों को

नहीं धरम से डिगने देंगे, अलियों को और कलियों को

ऋतुओं का अलबेला राजा इन पर चँवर ढुलायेगा

ये किरणों से लिपट-लिपट कर, कण-कण में रम जायेंगे

मुसकानों पर मुसकायेंगे, आहों पर थम जायेंगे


ये मेरी अटपटी बँसुरिया, जो भी तान सुना देगी

भावी की अनब्याही राधा, उस पर ही लुट जायेगी

आने वाली सदियाँ उनको.....


मनचाहा इतिहास लिखो तुम इनने क्रान्ति जगा दी है

परिवर्तन की भव्य भूमिका लिख कर मुहर लगा दी है

मैंने लिया इन्हें माटी से, माटी को ही सौंपा है

मेरी वाणी से माटी का सचमुच बड़ा घरोपा है

जो भी माटी का तन होगा वो तो इनको गाएगा

स्वर्ण-रजत का पुतला बेशक इनसे आँख चुराएगा


ये मेरी निष्प्राण भैरवी जो भी सुबह उगा देगी

सौ-सौ रातें उससे अपनी चूनरिया रंगवाएँगी

आने वाली सदियाँ.....

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(इस गीत के चौथे छन्द में एक पंक्ति छपने से रह गई है। यदि किसी कृपालु के पास इस कविता का सम्पूर्ण पाठ हो तो कृपया उपलब्ध करवाएँ।)


पूर्व कथन - ‘दरद दीवानी’ की कविताएँ पढ़ने से पहले’ यहाँ पढ़िए

छत्तीसवीं कविता: ‘नेह लगा कर तुमसे मैंने’ यहाँ पढ़िए









दरद दीवानी
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज निलय, बालाघाट
प्रथम संस्करण - 1100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण पृष्ठ - मोहन झाला, उज्जैन
मुद्रक - लोकमत प्रिंटरी, इन्दौर
प्रकाशन वर्ष - (मार्च/अप्रेल) 1963





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