आज भला क्या आफत आई

श्री बालकवि बैरागी
के प्रथम काव्य संग्रह ‘दरद दीवानी’ की तीसवीं कविता




कल तो दिन भर साथ चले तुम, लोक-लाज सब छोड़ कर

आज भला क्या आफत आई, जाते हो मुँह मोड़ कर


मैंने कब आवाज तुम्हें दी, मैंने तुम्हें बुलाया कब

बुरा न मानो, साफ बताओ, मैं तुम पर ललचाया कब

मैंने कब चाहा तुम मेरे, सुख या दुःख में साथ दो

कब मखमल के दिन माँगे, कब कहा रेशमी रात दो


मैं ठहरा या तुम ही आये, नंगे पाँवो दौड़ कर

आज भला क्या आफत आई, जाते हो मुँह मोड़ कर

कल तो दिन भर.....



मैं तो पहले ही एकाकी, जीता था और चलता था

यूँ ही आँसू हँसते थे और, यूँ ही यौवन जलता था

तुमने दिन भर साथ गुजारा, और मुसीबत कर डाली

हर सिसकी देती अब ताने, हर आँसू देता गाली


खूब जहर के घूँट पिलाये, मीठा रिश्ता जोड़कर

आज भला क्या आफत आई, जाते हो मुँह मोड़ कर

कल तो दिन भर.....



किसने मेरे हाथ पकड़ कर, वचन दिये थे अनमाँगे

किसने मेरी राहें बदलीं, कौन चला मुझसे आगे

ओ! निर्मोही अब तो मन के लाख दुवारे खोल दो

पहले किसने ओठ बढ़ाये, तुम्हें कसम है बोल दो


मजा तुम्हें क्या आया मेरी, गति के पंख मरोड़ कर

आज भला क्या आफत आई, जाते हो मुँह मोड़ कर

कल तो दिन भर.....



साँसों में साँसें क्यों घोलीं, मुझे किया कुबेर क्यों

अलकों पर ये चाँद-सितारों के, लगवाये ढेर क्यों

ऊमर की आहुति लगवा कर, कैसा हवन कराया है

कौन जनम का बैर लिया है, कैसा रूप दिखाया है


कौन स्वर्ग में जाअगे तुम, नया घरौंदा तोड़ कर

आज भला क्या आफत आई, जाते हो मुँह मोड़ कर

कल तो दिन भर.....



खैर, हटाओ, ये बतलाओ, सपनों में तुम आये क्यों

और अगर आये तो तुमने, सोये गीत जगाये क्यों

जगा दिये तो ये बतलाओ, तुमने उनको गाये क्यों

गाये तो कुछ हर्ज नहीं पर, बार-बार दुहराये क्यों


क्या पाओगे मुझ निर्धन के, सपने चन्द निचोड़ कर

आज भला क्या आफत आई, जाते हो मुँह मोड़ कर

कल तो दिन भर.....

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दरद दीवानी
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज निलय, बालाघाट
प्रथम संस्करण - 1100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण पृष्ठ - मोहन झाला, उज्जैन

मुद्रक - लोकमत प्रिंटरी, इन्दौर
प्रकाशन वर्ष - (मार्च/अप्रेल) 1963













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