उस दिन दादा रोते ही रहे

 

नेहरूजी के अवसान दिनांक 27 मई 1964 को दादा, घर पर, मनासा में ही थे। उन्हें खबर पर विश्वास ही नहीं हुआ था। खबर सुनकर ही वे धार-धार रोने लगे थे। हम सब उन्हें देखे जा रहे थे। कोई भी उन्हें समझाने या ढाढस बँधाने की स्थिति में नहीं था। वे तो हम सब का ढाढस थे! उन्हें हम क्या ढाढस बँधाते! उन्हें रोते देख-देख कर दुःखी हुए जा रहे थे। उस दिन दादा ने भोजन नहीं किया। किसी से बात भी नहीं की। 

नेहरूजी की शवयात्रा का आँखों देखा हाल आकाशवाणी से प्रसारित हो रहा था। दादा खुद के लिए तो रेडियो नहीं खरीद पाए थे लेकिन पिताजी के लिए उन्होंने एक ट्रांजिस्टर खरीद दिया था। ठीक-ठीक तो याद नहीं किन्तु शायद फिलिप्स का ‘बहादुर’ मॉडल ट्रांजिस्टर था। पिताजी की बैठक, मकान के अगले हिस्से में बनी छोटी सी कोठरी में थी जिसे हम सब ‘ओऽरी’ कहते थे। दादा, वहीं ओऽरी में, पिताजी के पास बैठकर शवयात्रा का आँखों देखा हाल सुन रहे थे और निरन्तर रोए जा रहे थे। मैं भी ओऽरी में ही बैठा हुआ था। 

पिताजी भी उन्मन-मन आँखों देख हाल सुन रहे थे। लेकिन उनकी नजर बराबर दादा पर बनी हुई थी। बड़ी देर बाद पिताजी ने धीर-गम्भीर स्वर में दादा से कहा - ‘जावा वारो चल्यो ग्यो बेटा! अबे रोवो मती। रोवा ती जावा वारो तो पाछो नी आवेगा। खुद ने हमारो ने जावा वारा काम हाथ में लो ने वणी ने आगे बढ़ाओ। पूरो करो।’ (जानेवाला चला गया बेटा! अब रोओ मत। रोने से, जानेवाला वापस नहीं आएगा। खुद को सम्हालो और जानेवाले का काम हाथ में लो और उसे आगे बढ़ाओ। पूरा करो।) 

दादा ने कोई जवाब नहीं दिया। पिताजी की ओर देखा भी नहीं। रोते-रोते ही, चुपचाप सुन लिया।

कुछ ही दिनों बाद दादा के दो गीत सामने आए - एक हिन्दी में और एक मालवी में। पहले कौन सा लिखा गया, यह तो दादा ही जाने। किन्तु मुझे लगता है कि दादा के मन मे मालवी गीत पहले उगा होगा क्योंकि वे मालवी में ही सोचते थे। 

दादा के ये दोनों गीत यहाँ प्रस्तुत है। पहले मालवी गीत और बाद में हिन्दी गीत। मालवी गीत, दादा के मालवी गीतों के संग्रह ‘चटक म्हारा चम्पा’ में ‘हार्‌या ने हिम्मत’ शीर्षक से और हिन्दी गीत ‘मत घबराओ’ शीर्षक से, ग्रीत संग्रह ‘गौरव गीत’ में संग्रहित है। 



हार्‌या ने हिम्मत

भरी रे दुपेरी में सूरज डूब्यो
वेईग्यो घुप्प अँधारो रे राम
तो मन का दिवला संजोवो म्हारा संगवी
करी लो नी फेर उजारो रे राम

घरती को धीरज धक-धक घूजे
गगन वसीका ताणे रे
इंडो फूटीग्यो टींटोड़ी को
जिवड़ा की जिवड़ो जाणे रे
तो बीती बिसारो ने धीरज धारो
यूँ मती हिम्मत हारो रे राम!
मन का दिवला संजोवो म्हारा संगवी
करी लो नी फेर उजारो रे राम
भरी रे दुपेरी में.....

आँबा लगईग्यो ने हाँटा उगईग्यो
काँटा का नखल्या तोड़ीग्यो
भूखा ने धाणी ने गूँगा ने वाणी
देई ने हठीलो पोढ़ीग्यो
या तितली पे बिजली पड़ी अण वीती
गायाँ ने छोड़ीद्यो चारो रे राम!
तो मन का दिवला संजोवो म्हारा संगवी
करी लो नी फेर उजारो रे राम
भरी रे दुपेरी में.....

मन्दर रोवे ने मज्जित रोवे
रोवे है गुरुद्वारा रे
गिरजाघर का आँसू न्ही टूटे
रोवे धरम हजाराँ रे
मनकपणा ने नींदड़ली अईगी
वेईग्यो बन्द हुँकारो रे राम!
तो मन का दिवला संजोवो म्हारा संगवी
करी लो नी फेर उजारो रे राम
भरी रे दुपेरी में.....


तीरथ अपणो ते करीग्यो है
जग ने मोवणहारो रे
दरसण करवा ने पाछे अईर्‌यो
आखो ही जग दुखियारो रे
पाछे वारा की पीड़ा जाणो ने
आगे पंथ बुहारो रे राम!
मन का दिवला संजोवो म्हारा संगवी
करी लो नी फेर उजारो रे राम
भरी रे दुपेरी में.....


पग पग पर पँतवार॒याँ वणई ने
पंथ वणईग्यो पाको रे
सत का सरवर और सरायाँ
बाँधीग्यो बेली थाँको रे
(अब) काँधा की कावड़ छलकी न्‍ही जावे
बिछड़े न्ही संग यो रुपारो रे राम!
तो मन का दिवला संजोवो म्हारा सँगवी
करी लो नी फेर उजारो रे राम
भरी रे दुपेरी में..... 

वेगा-वेगा चालो तो पंथ कटेगा
रात कटेगा अँधारी रे
आँसूड़ा पोंछो तो आँखा में उतरे
पूनम की असवारी रे
ठेठ ठिकाणे पोंची ने अपणा
काँधा को बोझ उतारो रे राम!
मन का दिवला संजोवो म्हारा संगवी
करी लो नी फेर उजारो रे राम
भरी रे दुपेरी में

एक असते है तो एक उगे है
मत यो नेम बिसारो रे
सूरज डूब्यो तो चाँद उगेगा
न्हीं तो उगेगा तारो रे
नछंग अँधारो कदी भी नही रेगा
पूरब आड़ी  नाऽरो रे राम!
मन का दिवला संजोवो म्हारा संगवी
करी लो नी फेर उजारो रे राम
भरी रे दुपेरी में.....
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अब पढ़िए हिन्दी गीत
 

मत घबराओ

भरी दुपहरी
सूरज डूबा, मत घबराओ
अपने मन का दिया जला कर
जैसे-तैसे कदम बढ़ाओ
मत घबराओ.....

- 1 -

यदा-कदा ही इतिहासों में, ऐसा अवसर आता है
जब कि धरा का जलता सूरज, अनायास बुझ जाता है
इसे अँधेरा मान-मान कर
मत प्रकाश का मान घटाओ
मत घबराओ, सूरज डूबा.....

- 2 - 

जानेवाला चला गया तो, क्या होगा यूँ रोने से
नया उजाला फूट रहा है, देखो कोने-कोने से
उसके आदर्शों पर चलकर
तुम खुद ही सूरज बन जाओ
मत घबराओ, सूरज डूबा.....

- 3 - 

अपने पैरों खड़ा कर दिया उसने, भरी जवानी को
नये सिरे से पूरी लिख दी, उसने मिटी कहानी को
अब तो बस शीर्षक देना है
इतना तो तुम भी कर जाओ
मत घबराओ, सूरज डूबा.....

- 4 -

इतिहासों में अमर नहीं है, आज तलक अँधियारा रे
सूरज डूबा, चाँद उगेगा, या उभरेगा तारा रे
नये सूर्य के जनम दिवस तक
तारों से ही काम चलाओ
मत घबराओ, सूरज डूबा.....
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यहाँ प्रस्तुत चित्र गाँधी सागर बाँध के उद्घाटन समारोह (19 नवम्बर 1961) का है। 19 नवम्बर इन्दिराजी की जन्म तारीख है। उद्घाटन की यह तारीख डॉक्टर कैलाशनाथ काटजू ने तय की थी। उद्घाटन समारोह का संचालन दादा ने ही किया था। मन्दसौर संसदीय क्षेत्र के तत्कालीन लोक सभा सदस्य श्री माणक भाई अग्रवाल भी मंच पर उपस्थित थे।  आयोजन की बिजली और ध्वनि व्यवस्था का जिम्मा, मन्दसौर के ख्यात, पीढ़ियों पुराने, साखदार प्रतिष्ठान ‘दवे ब्रदर्स’ ने लिया था।  यह चित्र, दादा की पोती, हम सबकी रूना (रौनक बैरागी) ने उपलब्ध कराया है।

रतलाम के सुपरिचित रंगकर्मी रहे श्री कैलाश व्यास ने 'चटक म्‍हारा चम्‍पा' संग्रह उपलब्ध कराया है। वे मध्य प्रदेश शासन के विधि (न्याय) विभाग के, उप संचालक अभियोजन जैसे प्रतिष्ठित पद से सेवा निवृत्त हैं।
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3 comments:

  1. आदरणीय सर , आपका लेखन निशब्द करता है | ढेरों आभार इस भावपूर्ण लेख के लिए |

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    1. आपकी टिप्पणी अभी ही देखी।
      वस्तुतः, गए सवा महीने में, आयु में मुझसे बहुत छोटे, लगभग बारह मेरे-अपने कोरोना के शिकार हो गए। इनमें से तीन तो ऐसे थे जिनकी बारात में गया था। मुझे कुछ भी सूझ नहीं रहा। लग रहा है कि मैं जड़ हो गया हूँ। सब-कुछ यन्त्रवत् हो रहा है।
      आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। अत्यधिक विलम्ब से जवाब देने के लिए मैं अन्तर्मन से आपसे क्षमा माँगता हूँ।
      कृपा बनाए रखिएगा।

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  2. दादा जैसे लोग अब कहाँ रहें |

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आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.