यह संग्रह, राष्ट्रकवि रामधरी सिंह दिनकर को समर्पित किया गया है।
निर्वसन मुखौटे: निर्लज्ज प्रसंग
कितने तन्मय होकर
नवधा भक्ति से
शक्ति के पुजारी
अशक्ति को पूज रहे हैं
कि आनन्दाश्रुओं से
मुखौटों तक के पपोटे सूज रहे हैं।
बुद्धिवादियों!
इन मुखौटों को उतारो
गांधारी की तरह यूँ पट्टी मत बाँधो।
महाभारत मचे, उससे पहिले
धृतराष्ट्र को उबारो।
सती होने के लिए पतिव्रता होना आवश्यक नहीं है
पर सुहाग दोनों के लिए जरूरी है।
अरे पहिले यह तो दखो कि तुम्हारी गोद
किसके कारण भरी-पुरी है।
बुद्धि का पाणिग्रहण प्रजातन्त्र ने किया था न!
ओफ! इन सम्मोहन के गीतों को समझो।
भाँवर ही भाँवर में दूल्हा बदल जायेगा।
तुम लगे रहोगे भात के बन्दोबस्त में
और यहाँ पूरी रस्म का दम निकल जायेगा!
अरे जरा इन कहारों को देखो
लम्पट लुच्चाई है इनकी आँखों में
ये कौमार्य में कुसुमित
सुहाग की आकांक्षिणी
बुद्धि बिटिया के डोले
को
कुरंग की चाल ले जायेंगे
तुम बिदा कर रहे हो ससुराल के लिए
पर अगली ही अमराई से
ये पकड़ेंगे पगडण्डी
और लाड़ली को सीधे ननिहाल ले जायेंगे!
बेटी बरबाद होगी
तुम बदनाम होना
गालियाँ देना कहारों को
और दामाद को नामर्द कह कर
अगले जनम तक रोना।
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नवधा भक्ति से
शक्ति के पुजारी
अशक्ति को पूज रहे हैं
कि आनन्दाश्रुओं से
मुखौटों तक के पपोटे सूज रहे हैं।
बुद्धिवादियों!
इन मुखौटों को उतारो
गांधारी की तरह यूँ पट्टी मत बाँधो।
महाभारत मचे, उससे पहिले
धृतराष्ट्र को उबारो।
सती होने के लिए पतिव्रता होना आवश्यक नहीं है
पर सुहाग दोनों के लिए जरूरी है।
अरे पहिले यह तो दखो कि तुम्हारी गोद
किसके कारण भरी-पुरी है।
बुद्धि का पाणिग्रहण प्रजातन्त्र ने किया था न!
ओफ! इन सम्मोहन के गीतों को समझो।
भाँवर ही भाँवर में दूल्हा बदल जायेगा।
तुम लगे रहोगे भात के बन्दोबस्त में
और यहाँ पूरी रस्म का दम निकल जायेगा!
अरे जरा इन कहारों को देखो
लम्पट लुच्चाई है इनकी आँखों में
ये कौमार्य में कुसुमित
सुहाग की आकांक्षिणी
बुद्धि बिटिया के डोले
को
कुरंग की चाल ले जायेंगे
तुम बिदा कर रहे हो ससुराल के लिए
पर अगली ही अमराई से
ये पकड़ेंगे पगडण्डी
और लाड़ली को सीधे ननिहाल ले जायेंगे!
बेटी बरबाद होगी
तुम बदनाम होना
गालियाँ देना कहारों को
और दामाद को नामर्द कह कर
अगले जनम तक रोना।
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‘भावी रक्षक देश के’ के बाल-गीत यहाँ पढ़िए। इस पन्ने से अगले गीतों की लिंक, एक के बाद एक मिलती जाएँगी।
वंशज का वक्तव्य (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - ज्ञान भारती, 4/14, रूपनगर दिल्ली - 110007
प्रथम संस्करण - 1983
मूल्य 20 रुपये
मुद्रक - सरस्वती प्रिंटिंग प्रेस, मौजपुर, दिल्ली - 110053
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