असन्तुष्ट काँग्रेसियों से



श्री बालकवि बैरागी के पाँचवें काव्य संग्रह 
         ‘गौरव गीत’ का तेईसवाँ गीत

.....मैं काँग्रेस के मंच से हिन्दी मंच पर आया हूँ। सो, मैंने उस महान् संस्था के उपकार को नहीं भूलना चाहिये। मेरी नैतिकता मुझे इसके लिये हमेशा आगाह करती रहती है। .....मुझे लोकप्रियता देने में इन गीतों का बहुत बड़ा योगदान है। पूरे देश के आर-पार मेरा एक विशाल परिवार इन गीतों ने तैयार किया है। .......न इनका कोई साहित्यिक मूल्य है न इनमें कोई साहित्यिक बात ही है। फिर भी ये पुस्तकाकार छपे हैं। .....मेरे लिये यह जरूरी था कि इनको छपा कर आप तक पहुँचाऊँ। 


असन्तुष्ट काँग्रेसियों से

                                नाराज बुजुर्गों! गुमराह जवानों!
                                नेहरू की नहीं मानी, पर वक्त की मानो
                                फिर थामो तिरंगा
                                फिर थामो तिरंगा

- 1 -

                                शिकवों को दफन करके, परिवार में आओ
                                वीराना न हो जाये, गुलजार में आओ
                                गैरों की गली-कूचों की, खाक न छानो
                                नेहरू की नहीं मानी, पर वक्त की मानो
                                                        फिर थामो तिरंगा.....

- 2 -

                                ये घर है तुम्हारा, आँगन है तुम्हारा
                                तुम जैसे सयानों को, काफी है इशारा
                                कुछ फिक्र करो घर की, यूँ अपनी न तानो
                                नेहरू की नहीं मानी, पर वक्त की मानो
                                                        फिर थामो तिरंगा.....

- 3 -

                                तूफानों के तेवर से लो, आँख मिलाओ
                                तुम ही हो नाखुदा, कश्ती को बचाओ
                                समझो रे हकीकत को, सोचो रे सयानों
                                नेहरू की नहीं मानी, पर वक्त की मानो
                                                        फिर थामो तिरंगा.....

- 4 -

                                ये वक्त है, आ जाओ, एहसान तुम्हारा
                                छुड़वाये गुमाँ तुमसे, भगवान तुम्हारा
                                माँ फिर न पुकारेगी, आगे तुम्हीं जानो
                                नेहरू की नहीं मानी, पर वक्त की मानो
                                                        फिर थामो तिरंगा.....
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गौरव गीत - काँग्रेस सेवादल के लिए रचित गीतों का संग्रह
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - पिया प्रकाशन, मनासा (म. प्र.)
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन
कॉपी राइट - ‘कवि’ (बालकवि बैरागी)
प्रथम संस्करण - 1100 प्रतियाँ,
प्रकाशन वर्ष - 1966
मूल्य - 1.50 रुपये
मुद्रक - रतनलाल जैन,
पंचशील प्रिण्टिंग प्रेस, मनासा (म. प्र.) 
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यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।





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