धान उग्यो

 
श्री बालकवि बैरागी के मालवी श्रम-गीत संग्रह
‘अई जावो मैदान में’ की सातवीं कविता


यह संग्रह डॉ. श्री चिन्तामणिजी उपाध्याय को समर्पित किया गया है।



धान उग्यो

धान उग्यो रे भई धान उग्यो
यो धान उग्यो रे भई धान उग्यो
कारा-कारा खेताँ में
अणा प्यारा-प्यारा खेताँ में
अणा जग रखवारा खेताँ में
यो मेहनत को सनमान उग्यो
धान उग्यो रे भई धान उग्यो

लीली कूँपर ऊपर देखो आँख लगी असमान की
बालपणा पे नीऽत डिगी है सागेसाग जवान की
घटाटोप वदरोटो फाट्यो मूसरधार पड़ी भारी
कोप करी ने बिजली टूटी पण या कूँपर न्ही हारी
अणा भारी मूसरधाराँ में
अणा विजरी का अंगारा में
अणा परलय का हुँकारा में
यो अम्बर को अपमान उग्यो
धान उग्यो रे भई धान उग्यो

जमीं दोज वेईग्या बड़ पीपल, हँसी-हँसी और ठट्ठा में
ऊँचा-ऊँचा महल जमीं पर, अईग्या एक झपट्टा में
पूर नद्याँ का पाट फरीग्या, अणी धान का माथा पर
मरण मौत ने उड़द वखेर्या लाख दाण अन्दाता पर
पण मौत मरण सब थाकीग्या
सभी निसाँसा न्हाकीग्या
ई ऊबी बागड़ डाकीग्या
यो अद्भुत अम्बर प्राण उग्यो
धान उग्यो रे भई धान उग्यो

नाचण नींदे नरम हाथ ती एड़ो परमो फेंके रे
एक-एक कूँपर के ऊपर हाथ लगई ने देखे रे
गड़ा गूँथती जावे मन में, एकल्ली मुसकावे रे
ऐरे-मेरे चार सहेल्याँ, नवी नींदणी गावे रे
ई गीत नसीला हुणवा ने
ई गीत लजीला हुणवा ने
यो धरती पर असमान उग्यो
धान उग्यो रे भई धान उग्यो

मूँछ मरोड़े जबर-सबर की आँखाँ में लल्लाई रे
ऊबो मेड़ पर परबत प्रीतम, देखे सकल कमाई रे
साँस-साँस पर छाती फूले, फड़के भुजा कसीली रे
ई मरदाँ का ठाठ साँवरी धरती कर दी लीली रे
श्रम का खारा पाणी को
अणी निरधन राजा राणी को
अणी नागा भूखा दानी को
यो देखो गरब गुमान जग्यो
धान उग्यो रे भई धान उग्यो

मस्त कूँपराँ छाने-छाने करे कान में वाताँ रे
चार दनाँ की जिनगी बेन्या, चार घड़ी की राताँ रे
काले दाँतरो अइ जावेगा, ऊ पापी न्ही छोड़ेगा
कम्मर काट हराणे देगा, और चेन से पोढ़ेगा
आलस परमो न्हाको ऐ
बेन्या झटपट पाको ऐ!
जीवन को रस चाखो ऐ
यो गारा में ईमान उग्यो
धान उग्यो रे भई धान उग्यो

दाणो-दाणो जीवत वेईग्यो, आँधी में भी इतरावे
अंगद को पग उग्यो देखो, कूण अणी ती अतड़ावे
परमारथ के खातर पाके, पुरसारथ को साथी रे
अण ती मोटो म्हने वतावो धरती पर खैराती रे
भूल्यो पन्थ वतावा ने
श्रम का गीत गुँजावा ने
हाँचो देव पुजावा ने
यो गोबर में भी ज्ञान उग्यो
धान उग्यो रे भई धान उग्यो
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संग्रह के ब्यौरे
अई जावो मैदान में (मालवी कविता संग्रह) 
कवि - बालकवि बेरागी
प्रकाशक - कालिदास निगम, कालिदास प्रकाशन, 
निगम-निकुंज, 38/1, यन्त्र महल मार्ग, उज्जन (म. प्र.) 45600
प्रथम संस्करण - पूर्णिमा, 986
मूल्य रू 15/- ( पन्द्रह रुपया)
आवरण - डॉ. विष्णु भटनागर
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मुद्रक - राजेश प्रिन्टर्स, 4, हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन





यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।











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