यह संग्रह डॉ. श्री चिन्तामणिजी उपाध्याय को समर्पित किया गया है।
घुड़ला पे आजो मती
घुड़ला पे आजो मती
ओ म्हारा नटखट कामणगारा ओ
हल्दी चढ़ाताँ पेलाँ सोची लीजो जी म्हारा राज
ओ म्हारा सपना में भटकणहारा ओ
हिवड़े लगाता पेलाँ सोची लीजो जी म्हारा राज
खेताँ में नेहराँ कोनी
अमरत की लहराँ कोन्ही
तरवार्याँ तोरण मारो
या असी वेराँ कोन्ही
ओ म्हारा तोरण पर तरसणहारा ओ
घुड़लो भिड़्याँ पेलाँ सोची लीजो जी म्हारा राज
ओ म्हारा लहर्या से लिपटणहारा ओ
बजाजाँ के जाताँ पेलाँ सोची लीजो जी म्हारा राज
ओ म्हारा नटखट कामणगारा ओ.....
माड़ी थाँ की आँसू ढारे
थाँकी मूँ.छा आड़ी नारे
जणी का बधावा गाया
पड़ोसी छाती बारे
ओ म्हारा नेणा का निरखण हारा ओ
काजर मोलाताँ पेलाँ सोची लीजो जी म्हारा राज
ओ म्हारी नथड़ी पर निछरणहारा ओ
मोतीड़ा बिंधाताँ पेलाँ सोची लीजो जी म्हारा राज
ओ म्हारा नटखट कामणगारा ओ.....
पसीनो पुजायो कोन्ही
लोभीड़ो लजायो कोन्ही
माह भाग्यो, पौष भाग्यो
फागणियो आयो कोन्ही
ओ म्हारा बागाँ में बिलखण हारा ओ
भँवरा भगाताँ पेलाँ सोची लीजो जी म्हारा राज
ओ म्हारी ऐड़्याँ का परखणहारा ओ
तेड़îाँ मोलाताँ पेलाँ सोची लीजो जी म्हारा राज
ओ म्हारा नटखट कामणगारा ओ.....
कुटिया अन्धारी देखो
अकड़ अटारी देखो
बलद्या के पाछे चाले
रीती वणकी थारी देखो
ओ म्हारी टुक््याँ पे रीझणहारा ओ
कसणाँ गुँथाता पेलाँ सोची लीजो जी म्हारा राज
ओ म्हारा हिवड़ा ने परसनहारा ओ
तमण्यो घड़ाताँ पेलाँ सोची लीजो जी म्हारा राज
ओ म्हारा नटखट कामणगारा ओ.....
घर ही घर में एको कोन्ही
हिया हूँना देखो कोन्ही
गिरधारी बोझाँ मरे
दे कोई टेको कोन्ही
ओ म्हारा बाजूबन्द ने निरखणहारा ओ
लालाँ गँठाताँ पेलाँ सोची लोजो जी म्हारा राज
ओ म्हारी पोंच्याँ का परखणहारा ओ
कणयों मोलाताँ पेलाँ सोची लीजो जी म्हारा राज
ओ म्हारा नटखट कामणगारा ओ.....
केताँ म्हारे आँसू आवे
केसर ने कागा खावे
चकवी ने कोई न्ही पूछे
कोयलड़ी भूखी गावे
ओ म्हारा होठाँ ने चाखणहारा ओ
बिड़ला मोलाताँ पेलाँ सोची लीजो जी म्हारा राज
ओ म्हारी मेंहदी पे हरकणहारा ओ
छल्ला मोलाताँ पेलाँ सोची लीजो जी म्हारा राज
ओ म्हारा नटखट कामणगारा ओ.....
मारू बाजा नत बाजे
मेंहदी पे तोपाँ गाजे
हिंगरू को हियो फाटे
धरती को तन दाजे
ओ म्हारा ललवट का लिक्खणहारा ओ
हिंगरू मोलाताँ पेलाँ सोची लीजो जी म्हारा राज
ओ म्हारा चुड़ला का रखवारा ओ
चुपलाँ जड़ाताँ पेलाँ सोची लीजो जी म्हारा राज
ओ म्हारा नटखट कामणगारा ओ......
बागाँ में रस कोन्ही
फूलाँ में हुलस कोन्ही
कलियाँ अलूणी लागे
मारीड़ा ने जस कोन्ही
ओ म्हारी पिंडल्या ने पोसणहारा ओ
गंधी के जाताँ पेलाँ सोची लीजो जी म्हारा राज
ओ म्हारा बिछिया पे बिसरणहारा ओ
पनियाँ मोलाँता पेलाँ सोचो लीजो जी म्हारा राज
ओ म्हारा नटखट कामणगारा ओ.....
काँकण बँधाओ मती
पडरो मोलावो मती
मगरी पर कागो बोले
घुड़ला पे आवो मती
ओ म्हारा ढोल्या पर पोढ़णहारा ओ
चम्पो चुटाताँ पेलाँ सोची लीजो जी म्हारा राज
ओ म्हारी होकड़ पे ललचणहारा ओ
बिरहण बणाताँ पेलाँ सोची लीजो जी म्हारा राज
ओ म्हारा नटखट कामणगारा ओ.....
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संग्रह के ब्यौरे
अई जावो मैदान में (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बेरागी
प्रकाशक - कालिदास निगम, कालिदास प्रकाशन,
निगम-निकुंज, 38/1, यन्त्र महल मार्ग, उज्जन (म. प्र.) 45600
प्रथम संस्करण - पूर्णिमा, 986
मूल्य रू 15/- ( पन्द्रह रुपया)
आवरण - डॉ. विष्णु भटनागर
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मुद्रक - राजेश प्रिन्टर्स, 4, हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
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