यह संग्रह डॉ. श्री चिन्तामणिजी उपाध्याय को समर्पित किया गया है।
फिकर करो
फिकर करो रे भई फिकर करो
थोड़ी-थोड़ी घर की भी फिकर करो
यूँ मत नवरई हिरो-फिरो
(या) आजादी जवान वेईगी
आजादी जवान वेईगी
फिकर करो रे दादा फिकर करो
घर में बेटी वेईगी मोटी
ल्यावे बेवड़ो ने पोईले रोटी
अंगाँ को रूप निखर्यो
रूप को सरुप बिखर्यो
(या) फूलाँ को बाण वेईगी
आजादी जवान वेईगी
फिकर करो रे लाला फिकर करो
राता-राता गाल पड़ीग्या
सपना ऊबी भींत चढ़ीग्या
एड़्यॉं के बाल लागे
कई कूँ कमाल लागे
काम की कमान वेईगी
आजादी जवान वेईगी
फिकर करो रे बाबू फिकर करो
गुलक्यारी में दाख पकी गी
(तो) सग्गा भई की नीत डगी गी
गोत भूल्यो वंश भूल्यो
बाबुल को अंश भूल्यो
या, खून की पिछाण वेईगी
आजादी जवान वेईगी
फिकर करो रे भई फिकर करो
तोड़ी काड़्यो राखी तागो
लाल्यो लापर लारे लागो
नेणा में खोट राखे
यें वें ती कोट डाके
चोट कतरी दाँण वेईगी
आजादी जवान वेईगी
फिकर करो रे राजा फिकर करो
घर भेद्याँ का सपना कारा
आँत पेट की बेचणहारा
माटी को धान खावे
याराँ का गीत गावे
या लूण पर लचाण वेईगी
आजादी जवान वेईगी
फिकर करो रे लाला फिकर करो
आँखाँ आगे बेठो लाड़ो
थी कई यें वें आँखाँ फाड़ो
बेटी को हिवड़ो फाटे
आँसू ढारे होठ काटे
या मोरनी हैरान वेईगी
आजादी जवान वेईगी
फिकर करो रे दादा फिकर करो
और मती अब विरह बढ़ाओ
एका को लाड़ो लेई आवो
घर में जँवाई ने राखो
दोहिता का गाल चाखो
घणी खेंच-ताण वेईगी
आजादी जवान वेईगी
फिकर करो रे भई फिकर करो
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संग्रह के ब्यौरे
अई जावो मैदान में (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बेरागी
प्रकाशक - कालिदास निगम, कालिदास प्रकाशन,
निगम-निकुंज, 38/1, यन्त्र महल मार्ग, उज्जन (म. प्र.) 45600
प्रथम संस्करण - पूर्णिमा, 986
मूल्य रू 15/- ( पन्द्रह रुपया)
आवरण - डॉ. विष्णु भटनागर
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मुद्रक - राजेश प्रिन्टर्स, 4, हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
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