यह संग्रह नवगीत के पाणिनी श्री वीरेन्द्र मिश्र को समर्पित किया गया है।
धर्म संकट
धर्म संकट
मैने जब सुनाया
एक लतीफा
तो उन्होने मुझे
बाँहों में भरा
और गले से लगाया
पर जब मैंने शुरु की एक कविता
तो वे तुनक कर बोले
क्या मैं यही सब सुनने
यहाँ आया?
मैं देखता रह गया
होकर अवाक्
उधर झरते रहे
उनके पुरोवाक।
जटिल जीवन को
सरल करो कविराज।
कविता की कोई
भूमिका नहीं है आज।
घर-घर लिख रहे हैं लोग
पढ़-पढ़ कर अखबार
कभी व्यवस्था से प्यार
तो कभी उस पर प्रहार।
एक गाल को चूमो
और दूसरे पर
तमाचा मारो
चाहे बत्ती दो
या धूप बत्ती से
आरती उतारो
अभीष्ट दोनों का
एक ही हो जाता है
कि,
सामने वाला तुम्हारी
नोटिस ले।
अब बन्द करो यह
नोटिसबाजी
निरर्थक है तुम्हारी
राजी या नाराजी।
एक लतीफा, एक चुटकुला भर
तुम्हे तटस्थ साबित कर देगा
सुनने वाला न डरेगा
न तुम्हें चिन्ता से भर देगा
हँसकर टाल देगा और
तुम्हारा नाम लेकर मौके बे मौके
एकाध जगह उछाल देगा।
यहाँ मौलिकता का भी
चक्कर नहीं है
किसी सूरदास का तुलसीदास
का भी टकराव या टक्कर नहीं है
वैसे भी कविता-कविता है
कोई तुम्हारी खाला का घर नहीं है।
दुनिया की सर्वश्रेष्ठ कविता है
गीता।
पर उसे भी लोग मरते वक्त
सुनते हैं
कविता और लतीफे के बीच
समझदार लोग
लतीफे को चुनते हैं।
मैं मरणासन्न नहीं
जीवित हूँ
मुझे कुछ दिन और
जीने दीजिये
हो सके तो
एकाध लतीफा
और सुनाकर
कविता पर
कृपा कीजिये।
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संग्रह के ब्यौरे
मन ही मन (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - पड़ाव प्रकाशन
46-एल.आय.जी. नेहरू नगर, भोपाल-462003
संस्करण - नवम्बर 1997
मूल्य - 40 रुपये
आवरण - कमरूद्दीन बरतर
अक्षर रचना - लखनसिंह, भोपाल
मुद्रक - मल्टी ग्राफिक्स, भोपाल
यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है।
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती।
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती।
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
सच कविता तो कविता है।
ReplyDeleteहर वक्त आदमी लतीफे को सुनना पसन्द करता है लेकिन गम्भीर स्तिथि से उभरने का रास्ता कविता ही दिखाती है। बैरागी जी की बहुत खूबसूरत रचना है ये।
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