यह संग्रह डॉ. श्री चिन्तामणिजी उपाध्याय को समर्पित किया गया है।
चालो गऊ का जाया हो
चालो गऊ का जाया हो
टचर टचर टच टच टच टच टच
चालो रे गऊ का जाया ओ
थाँ को म्हारो साथ जनम को
मोटी थाँ की माया ओ
चालो रे गऊ का जाया ओ
कारी-कारी अंधारी बीती बैरण रात है
ऊपर तारो ऊगीग्यो रणियारो परभात है
होवा वारा सभी जोगा थाँ के ही जायाँ ओ
चालो रे गऊ का जाया ओ
नवी नवादी परभाती पंख पंखेरु गईर्या है
घट्याँ ओरी लुगायाँ ने मोतीड़ा पीसई र्या है
के विरहा के वारहमासा मन का गीत गवाया ओ
चालो गऊ का जाया ओ
राम नाम तो लेईल्यो है नाम काम को लेणो है
था भी जाणों गोठीड़ा, करजो कतरो देणो है
लेवा वारो जसरूँ-तसरूँ परखेगा सवाया ओ
चालो गऊ का जाया ओ
थाँ के पाँ है चार पग म्हारे पाँ दो हाथ है
खुद का खुद मुख्त्यार हाँ या कई कमती वात है
पण आजादी का अम्मर फल भी आपाँ ने न्ही खाया ओ
चालो गऊ का जाया ओ
काम मोकरो करणो है छोटी सी है जिन्दगानी
दन-दन ऊपर जईरी है जई ने पाछी न्ही आणी
कतरी मुश्किल ती अषाढ़ का बादीला दन आया हो
चालो गऊ का जाया ओ
म्हारे जस्सा लाखाँ की लागी थाँ से आस है
टूटी-फूटी झुँपड़्याँ ने था को ही विश्वास है।
सब नुगरा निकरी ग्या तो भी थाँ ने कौल निभाया ओ
चालो गऊ का जाया ओ
चाले आखो देस यो थाँ की पग हेन्याणी पर
थाँ की अम्मर धाक है इन्दर ने इन्द्राणी पर
आसमान ती वत्ती ठण्डी थाँ की गेरी छाया ओ
चालो गऊ का जाया ओ
म्हारा किसन करीम हो थी म्हारा रामा पीर हो
अन्दाता थी म्हारा हो जामण जाया वीर हो
थाँ के पाछे मौज करे थाँ का भतीजा भौजायाँ ओ
चालो गऊ का जाया ओ
थीं धरती का देव हो म्हूँ धरती को भार हूँ
हाथ पराणी म्हारे है पण लाख दाण लाचार हूँ
दारीद्दर मेटेगा म्हारा थाँ की पारस काया ओ
चालो गऊ का जाया ओ
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संग्रह के ब्यौरे
अई जावो मैदान में (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बेरागी
प्रकाशक - कालिदास निगम, कालिदास प्रकाशन,
निगम-निकुंज, 38/1, यन्त्र महल मार्ग, उज्जन (म. प्र.) 45600
प्रथम संस्करण - पूर्णिमा, 986
मूल्य रू 15/- ( पन्द्रह रुपया)
आवरण - डॉ. विष्णु भटनागर
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मुद्रक - राजेश प्रिन्टर्स, 4, हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
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