यह संग्रह पिता श्री द्वारकादासजी बैरागी को समर्पित किया गया है।
आ हमजोली
एक सरोवर की सब लहरें, एक गीत की सब लड़ियाँ
एक गगन के सभी सितारे, एक फूल की पाँखुड़ियाँ
एक नीड़ के सभी पखेरू, इक गोकुल के ग्वाल हैं
एक कलेजे के टुकड़े, इक जननी के लाल हैं
कब से पीट रहा हूँ तेरे बन्द पड़े दरवाजों को
अब तो सुन भी ले हमजोली कवि की इन आवाजों को
आ-आ-आ
हिल मिल के काम करें, आ हमजोली
नया-नया देश बोला नई-नई बोली
आ हमजोली.....
दूर-दूर रहने की घड़ियाँ गुजर गईं
बैठे-बिठाये तेरी बिगड़ी सँवर गई
अफसोस अब तक न तेरी नजर गई
अँगना में आजादी की परियाँ उतर गईं
पीछे कहीं रह गई बहारों की टोली
आ हमजोली.....
सोये पड़ौसी सभी जग गये हैं
जग क्या गये काम में लग गये हैं
मंजिल पे मन चाहे फल पक गये हैं
तू है कि तेरे कदम थक गये हैं
देख-देख-देख
होती है तेरी जवानी की ठिठोली
आ हमजोली.....
रत्नों से भरपूर धरती ये धानी
डग-डग पे रोटी और पग-पग पे पानी
तुझ पर जवानी और मुझ पर जवानी
फिर भी क्यों लाखों की आँखों में पानी
देख-देख-देख
दाता पसार रहा दर-दर पे झोली
आ हमजोली...
अभी भी गरीबी के तेवर चढ़े हैं
जोबन के गालों पे गहरे गढ़े हैं
तीरथ नये सब अधूरे पड़े हैं
हल्दी लगाये हुए झोंपड़े हैं
देख-देख-देख
कुंकुम कुँआरा है विधवा है रोली
आ हमजोली --
पोंछ. मत पसीना अभी से बदन का
कर्जा बकाया है काफी वतन का
जमीं पर जुटाना है स्वर्ग वो गगन का
सपना अधूरा है जननी के मन का
देख-देख-देख
जाये ना बिखर माँ के सपनों की टोली
आ हमजोली.....
तुझ सा ज़हर बोल किसने पिया है?
तूने सभी का भला ही किया है
वैसा लिया पर न ऐहसाँ लिया है
वादा अमन का जहाँ को दिया है
देख-देख-देख
मँडती तेरे अँगना बारूद से रंगोली
आ हमजोली.....
गंगा की मौजों ने ये क्या कहा रे
अल्हड़ हिमालय परेशाँ है प्यारे
चारण पुकारे तो किसको पुकारे
किधर राख में सो रहे हैं अंगारे
देख-देख-देख
फागुन से पहिले ही आगई होली
आ हमजोली.....
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जूझ रहा है हिन्दुस्तान
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मालव लोक साहित्य परिषद्, उज्जैन (म. प्र.)
प्रथम संस्करण 1963. 2100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन (म. प्र.)
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यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है।
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती।
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती।
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
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