यह संग्रह पिता श्री द्वारकादासजी बैरागी को समर्पित किया गया है।
ओ मधुवन के माली
मधुवन तेरा उड़ न जाये ओ मधुवन के माली!
आठों पहर तुझे करनी है अब इसकी रखवाली
ओ मधुवन के माली!
कितने युग तक पतझारों ने इस पर राज चलाया
निर्देय, निर्मम काँटों ने भी इस पर रौब जमाया
तू क्या जाने कितने आँसू रोई है हर डाली
ओ मधुवन के माली!
कितनी कलियाँ कच्ची टूटीं, कितने फुलवा रोये?
कितने भँवरे फँंसी झूले, कितने सूली सोये?
जूझी कितनी तरुण तितलियाँ, पुँछवा करके लाली ?
ओ मधुवन के माली!
फागुत आया वह बेला भी, थी कितनी दुखदाई
धधक रही थी जेठ दुपहरिया, मौसम था हरजाई
एक लपट ने झुलसा दी थी, सबकी सब हरियाली
ओ मधुवन के माली!
खून पसीना फिर से लाया है मादक तरुणाई
हर डाली पर यौवन आया, हर कलिका गदराई
सूख गई मावस की मेंहदी, आई रात उजाली
ओ मधुवन के माली!
तुझ पर जो बोझा आया है, उसके लिये बधाई
इस बेला में काम न देगी, ये पलकें अलसाई
एक पँखुरी भी मुरझाई तो, रुसवा होगा माली
ओ मधुवन के माली!
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जूझ रहा है हिन्दुस्तान
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मालव लोक साहित्य परिषद्, उज्जैन (म. प्र.)
प्रथम संस्करण 1963. 2100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन (म. प्र.)
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