यह संग्रह डॉ. श्री चिन्तामणिजी उपाध्याय को समर्पित किया गया है।
जागो दादा
जागो दादा भाग फाटी, बोलवा लागी चड़्याँ
मालवा में दन उगीग्यो, रात की बीती घड़्याँ
चाँद-तारा डूबी ग्या है, रामजी को नाम लो
चकवी चाली घर पिया के, हाल तक थी काँ पड़्या
जागो दादा भाग फाटी, बोलवा लागी चड़्याँ
पाँगती मत फेर वेंडा, जाग ने सब ने जगा
न्हीं तो थारी रोर वेगा, दाँत काड़े डावड़्याँ
जागो दादा भाग फाटी, बोलवा लागी चड़्याँ
हाथ में लो दाँतरो ने, काँधे मेऽलो पावड़ो
अन्नदाता थारा बारक ने, मिले न्ही राबड़्याँ
जागो दादा भाग फाटी, बोलवा लागी चड़्याँ
पेट डाबी, फाटी जाबी, भाभी के न्हीं काँचरी
आलसी मेलाँ में होवे, थारे वाते झूँपड़्याँं
जागो दादा भाग फाटी, बोलवा लागी चड़्याँ
मालवी! उठ, लो पखावज, और उगेरो भैरवी
वावरा थाँ रामजी ने, जग जगावा ने घड़्या
जागो दादा भाग फाटी, बोलवा लागी चड़्याँ
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संग्रह के ब्यौरे
अई जावो मैदान में (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बेरागी
प्रकाशक - कालिदास निगम, कालिदास प्रकाशन,
निगम-निकुंज, 38/1, यन्त्र महल मार्ग, उज्जन (म. प्र.) 45600
प्रथम संस्करण - पूर्णिमा, 986
मूल्य रू 15/- ( पन्द्रह रुपया)
आवरण - डॉ. विष्णु भटनागर
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मुद्रक - राजेश प्रिन्टर्स, 4, हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
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