श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘शीलवती आग’ की पाँचवीं कविता
राम के प्रति
राम के प्रति
तुम! कभी आकर कहो खुद
क्या व्यवस्था थी तुम्हारी ?
जो कि हैं आदर्श अब तक
और अब तक लक्ष्य है।
लक्ष्य भी सादर सनातन--
प्राप्त करने में जिसे सदियाँ
सिसक कर रह गईं।
हर तरह के लोग
सन्त, सुधिजन, विज्ञ, चिन्तक
सिद्ध, शासक या मनीषी
घोर असफल हो गए।
काल जिनको पी गया
अपनी सहज-सी प्यास में
जानकी का अपहरण तो
हो रहा हैँ आज भी।
हर ओर कंचन मृग कुलाँचें भर रहा है।
आज भी लंकेश की लिप्सा ललक दुर्दम्य है।
आचरण, वातावरण सर्वत्र है बिलकुल वही।
हर पात्र त्रेता का निपट निश्शंक है।
खा चुका मानो अमर फल
एक बस तुम ही नहीं हो
और गायब हैं व्यवस्था
जो कि स्थापित थी तुम्हारे नाम से।
हम दुहाई दे रहे हैं रात-दिन
लक्ष्य हर युग में तुम्हीं हो देश के
किन्तु बस अप्राप्य हो।
क्या पता इस लक्ष्य को हम पा सकेंगे या नहीं
’राज्य’ तो हम अन्ततः अपना कभी से ला चुके
शेष है बस ‘राम’
क्या पता इस ‘राम’ को हम ला सकेंगे या नहीं।
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संग्रह के ब्यौरे
शीलवती आग (कविता संग्रह)
कवि: बालकवि बैरागी
प्रकाशक: राष्ट्रीय प्रकाशन मन्दिर, मोतिया पार्क, भोपाल (म.प्र.)
प्रथम संस्करण: नवम्बर 1980
कॉपीराइट: लेखक
मूल्य: पच्चीस रुपये
मुद्रक: सम्मेलन मुद्रणालय, प्रयाग
यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
रूना के पास उपलब्ध, ‘शीलवती आग’ की प्रति के कुछ पन्ने गायब थे। संग्रह अधूरा था। कृपावन्त राधेश्यामजी शर्मा ने गुम पन्ने उपलब्ध करा कर यह अधूरापन दूर किया। राधेश्यामजी दादा श्री बालकवि बैरागी के परम् प्रशंसक हैं। वे नीमच के शासकीय मॉडल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में व्याख्याता हैं। उनका पता एलआईजी 64, इन्दिरा नगर, नीमच-458441 तथा मोबाइल नम्बर 88891 27214 है।
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