मेरे गाँव के लोग

 


श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘शीलवती आग’ की आठवीं कविता 






मेरे गाँव के लोग
(भाई, एडवोकेट श्री घनश्याम विजयवर्गीय से प्रेरित एक रचना।)

अब वे कुछ नहीं करेंगे
अब उनसे कुछ होगा भी नहीं
अब उनसे चाहे जो सलूक कर लो
बेशक पिलाओ उन्हें गटरों का पानी
शौक से ले जाओ सरकारी दफ्तर
अब वे कुछ नहीं करेंगे।

वे अलग-अलग व्यस्त हैं
कुछ मकानों में
कुछ दूकानों में
कुछ कचहरियों में
कुछ थानों में
कुछ जल रहे हैं ईर्ष्या के आँवों में
कुछ जी रहे हैं राजनैतिक भुलावों में
अब वे कुछ नहीं करेंगे।

कुछ कुर्सियों पर सो रहे हैं
कुछ कुर्सियों के नीचे नागफणी बो रहे हैं
कुछ अपने अतीत से तौल रहे हैं वर्तमान को
कुछ अपनी ही शैली में पटा रहे हैं भगवान को।
कुछ बात कर रहे हैं
भटकी हुईं आत्माओं से
कुछ सट्टे के अंक पूछ रहे हैं
मुर्शिदों और महात्माओं से
चाहे कुत्ते नोंचतें फिरें सड़कों पर
अधूरे बच्चे
पर अपनी धुन के सच्चे
अब वे कुछ नहीं करेंगे
अब उनसे कुछ होगा भी नहीं।

मेरी कविता
उनकी क्रान्ति
उनकी बारूद
मेरी शान्ति
सब निरर्थक है
सूख गया है हर घाट का पानी
टूट गए हैं दोेनों तट
तीर्थ खुद तरसे हैं
अब उनसे, मुझसे और हम सबसे
कभी कुछ नहीं होगा
अब हम कुछ नहीं करेंगे।

मजदूर मूक हैं
किसान किंकर्तव्यविमूढ़ और
बद्धिवादी बौखलाकर चुप हो चुके हैं।
विद्यार्थी वैचारिक मोड़ पर ठिठक गए हैं
व्यापारी व्यवस्थित हड़ताल की प्रतीक्षा में
रोज दुकान खोल देते हैं
सब्जीफरोश शक्ल देख कर नमती-चढ़ती तौल देते हैं
सब विभाजित हैं
बस्ती बँट गई है द्वीपों में
सूख गई है जीवन धारा
सारे पाञ्चजन्य समा गए हैं सीपों में
अब वे कुछ नहीं करेंगे
अब उनसे कुछ होगा भी नहीं।

अँधेरे से मार और
उजाले से धोखा खाए लोग
शायद ऐसे ही हो जाते होंगे
शरीर से जाग कर भी शायद
आत्मा से सो जाते होंगे।
तब वे कुछ नहीं कर पाते होंगे
शायद उनसे कुछ होता भी नहीं होगा।

मेरा प्रिय गाँव इकाई है इस देश की
और मेरी कविता झलक मात्र है समूचे परिवेश की
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संग्रह के ब्यौरे
शीलवती आग (कविता संग्रह)
कवि: बालकवि बैरागी
प्रकाशक: राष्ट्रीय प्रकाशन मन्दिर, मोतिया पार्क, भोपाल (म.प्र.)
प्रथम संस्करण: नवम्बर 1980
कॉपीराइट: लेखक
मूल्य: पच्चीस रुपये 
मुद्रक: सम्मेलन मुद्रणालय, प्रयाग




यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।




रूना के पास उपलब्ध, ‘शीलवती आग’ की प्रति के कुछ पन्ने गायब थे। संग्रह अधूरा था। कृपावन्त राधेश्यामजी शर्मा ने गुम पन्ने उपलब्ध करा कर यह अधूरापन दूर किया। राधेश्यामजी, दादा श्री बालकवि बैरागी के परम् प्रशंसक हैं। वे नीमच के शासकीय मॉडल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में व्याख्याता हैं। उनका पता एलआईजी 64, इन्दिरा नगर, नीमच-458441 तथा मोबाइल नम्बर 88891 27214 है। 














2 comments:

  1. बहुत ही सारगर्भित कविता।आज के दौर के लिए भी बिल्कुल सटीक है।
    नमन है इस रचना के रचयिता को।दादा की रचना शैली के सभी कायल है।

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    1. टिप्‍पणी के लिए बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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