माँ ने कहा




श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘आलोक का अट्टहास’ की चौथी कविता 








माँ ने कहा

‘झूठ बोलने पर
फट जाती थी धरती
मर जाते थे
झूठ बोलनेवाले
हो जाता था प्रलय’
ऐसा कहा करती थी माँ
और हवाला देती थी
न जाने कौन-कौन से शास्त्रों का।

मैं चौंककर देखता था
माँ को
अविश्वस्त नजरों से
और अवगत कराता
उस दिन की ताजा खबरों से।

माँ तब भी लकीर खींचती थी
अपने कहे के नीचे
और खिला देती थी
सत्य के बगीचे-ही-बगीचे--
‘बेटा!
अगर सच हैं
ये समाचार
और झूठ पर फटती नहीं है
धरती की छाती
झूठ बोलनेवाली काया
मरती नहीं है
तो, या तो ये लोग
वे लोग नहीं हैं
या फिर, ये धरती वो धरती नहीं है।

‘तू जब भी झूठ बोलता है
सूख जाते हैं मेरे आँचल
माँ के दूध में पड़ जाती हैं
दरारें
सुन्न  पड़ जाती है तेरी काया
प्रलय और मौत
पहुँच गए कहाँ से
कहाँ रे!
तू तो बस
अपनी जगह
सच बोला कर
मेरे दूध की सफेदी में
समाचारों की स्याही
मत घोला कर।’ 
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संग्रह के ब्यौरे
आलोक का अट्टहास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - सत्साहित्य प्रकाशन,
          205-बी, चावड़ी बाजार, 
          दिल्ली-110006
सर्वाधिकार - सुरक्षित
संस्करण - प्रथम 2003
मूल्य - एक सौ पच्चीस रुपये
मुद्रक - नरुला प्रिण्टर्स, दिल्ली

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