श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘शीलवती आग’ की तेरहवीं कविता
शीलवती आग
‘शीलवती आग’ की तेरहवीं कविता
शीलवती आग
न वह लाल होती है
न काली
आग केवल आग होती है
रंग नहीं है आग का चरित्र
आग का चरित्र है उसकी रंगत
याने ज्वलनशीलता
और ईंधन की सुसंगतता
उसका शील है जलते रहना
आकाशगामीे लपट का
लपलपा कर चलते रहना
एक आग होती है खून की
एक होती है जुनून की
एक और होती है सुकून की
खून काला नहीं होता
जुनून गोरा नहीं होता
और सुकून होता है रंगहीन
अब तुम खुद सोचो कि
तुम कौन-सी आग जी रहे हो?
वह तुम्हें पी रही हैं
या तुम उसे पी रहे हो ?
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संग्रह के ब्यौरे
शीलवती आग (कविता संग्रह)
कवि: बालकवि बैरागी
प्रकाशक: राष्ट्रीय प्रकाशन मन्दिर, मोतिया पार्क, भोपाल (म.प्र.)
प्रथम संस्करण: नवम्बर 1980
कॉपीराइट: लेखक
मूल्य: पच्चीस रुपये
मुद्रक: सम्मेलन मुद्रणालय, प्रयाग
यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
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