श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘शीलवती आग’ की पन्द्रहवीं कविता
थूको अपनी तटस्थता पर
‘शीलवती आग’ की पन्द्रहवीं कविता
थूको अपनी तटस्थता पर
जब हँसने लगे घुटन
अट्टहास करे अँधेरा
मुँह चिढ़ाएँ भेड़िये
तो समझो कुछ होने को है।
याने कि कुछ होगा
साफ-साफ बात है
कुछ करना होगा तुम्हें, मुझे और हमें।
तटस्थता की तश्तरी में
निष्क्रियता की सौगात
पान के बीड़े की तरह फिर रही है।
हाथ मत बढ़ाओ
इस तश्तरी की तरफ
अनदेखा कर दो इसे।
यह वह बीड़ा नहीं है जो तुम उठाओ।
थूको अपनी तटस्थता पर
निकम्मों की निष्क्रिय सभा से
झुँझला कर ही सही
फौरन बाहर आ जाओ
शुभ की प्रतीक्षा में ऊँघते अशुभ वर्तमान को
नकारना होगा
दोनों किनारे टूटें उससे पहिले
अपने तटस्थ को मारना होगा।
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संग्रह के ब्यौरे
शीलवती आग (कविता संग्रह)
कवि: बालकवि बैरागी
प्रकाशक: राष्ट्रीय प्रकाशन मन्दिर, मोतिया पार्क, भोपाल (म.प्र.)
प्रथम संस्करण: नवम्बर 1980
कॉपीराइट: लेखक
मूल्य: पच्चीस रुपये
मुद्रक: सम्मेलन मुद्रणालय, प्रयाग
यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
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