श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘शीलवती आग’ की छब्बीसवीं कविता
अपनी-अपनी शक्ति
‘शीलवती आग’ की छब्बीसवीं कविता
अपनी-अपनी शक्ति
पहाड़ों!
जितना टूट सकते हो टूट लो
प्रहरियों!
जितना लूट सकते हो लूट लो
न हम मासूम हैं
न बदहवास
निरीह तो हम हैं ही नहीं,
तोल लो अपनी-अपनी शक्ति
ताकत या कुव्वत
तुम्हारे पास हैं
चार टाँगों वाली कमजोर कुर्सी
हमारे पास हैं दो बलिष्ठ हाथ
जब भी आयेंगी
ये कमजोर टाँगें हमारे हाथों में
तुम बेशक पूछ लो पीछे वालों से
तब तिनके होंगे तुम्हारे दाँतों में।
-----
जितना टूट सकते हो टूट लो
प्रहरियों!
जितना लूट सकते हो लूट लो
न हम मासूम हैं
न बदहवास
निरीह तो हम हैं ही नहीं,
तोल लो अपनी-अपनी शक्ति
ताकत या कुव्वत
तुम्हारे पास हैं
चार टाँगों वाली कमजोर कुर्सी
हमारे पास हैं दो बलिष्ठ हाथ
जब भी आयेंगी
ये कमजोर टाँगें हमारे हाथों में
तुम बेशक पूछ लो पीछे वालों से
तब तिनके होंगे तुम्हारे दाँतों में।
-----
संग्रह के ब्यौरे
शीलवती आग (कविता संग्रह)
कवि: बालकवि बैरागी
प्रकाशक: राष्ट्रीय प्रकाशन मन्दिर, मोतिया पार्क, भोपाल (म.प्र.)
प्रथम संस्करण: नवम्बर 1980
कॉपीराइट: लेखक
मूल्य: पच्चीस रुपये
मुद्रक: सम्मेलन मुद्रणालय, प्रयाग
यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
No comments:
Post a Comment
आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.