श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘आलोक का अट्टहास’ की दसवीं कविता
‘आलोक का अट्टहास’ की दसवीं कविता
चिन्तक
बाँझ उनकी चिन्ता
निपूता उनका चिन्तन
उजाड़ उनकी चेतना
शगल और शौक उनके
बस आपके-हमारे
समय का गला रेतना।
निपूता उनका चिन्तन
उजाड़ उनकी चेतना
शगल और शौक उनके
बस आपके-हमारे
समय का गला रेतना।
उनके अपने वीरान टापू पर
सर्वथा अकेले
और सबसे बड़े
चिन्तक हैं वे।
वादी भी खुद
प्रतिवादी भी खुद
और-तो-और
आबादी भी अकेले
और अकेले भी वे खुद।
अपने अकेलेपन पर
झल्लाना उनकी लाचारी है
आपके भविष्य की चिन्ता में
सौ बरस जीना
उनकी बीमारी है।
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सर्वथा अकेले
और सबसे बड़े
चिन्तक हैं वे।
वादी भी खुद
प्रतिवादी भी खुद
और-तो-और
आबादी भी अकेले
और अकेले भी वे खुद।
अपने अकेलेपन पर
झल्लाना उनकी लाचारी है
आपके भविष्य की चिन्ता में
सौ बरस जीना
उनकी बीमारी है।
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संग्रह के ब्यौरे
आलोक का अट्टहास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - सत्साहित्य प्रकाशन,
205-बी, चावड़ी बाजार,
दिल्ली-110006
सर्वाधिकार - सुरक्षित
संस्करण - प्रथम 2003
मूल्य - एक सौ पच्चीस रुपये
मुद्रक - नरुला प्रिण्टर्स, दिल्ली
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