पेड़ की प्रार्थना




श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘आलोक का अट्टहास’ की इकतीसवीं कविता 




पेड़ की प्रार्थना

अपने तुच्छ सुखों के कारण
मत लो मेरी जान,
मत काटो, मत चीरो मुझको
मुझमें भी हैं प्राण।

            - 1 -

आठों पहर खड़ा रहता हूँ
लेकर अपनी काया
मेरी पत्ती-पत्ती देती
तुमको शीतल छाया
तब भी चला रहे हो आरी
कैसे हो इनसान ?
मत काटो, मत चीरो मुझको
मुझमें भी हैं प्राण।
अपने तुच्छ सुखों के कारण
मत लो मेरी जान।

            - 2 -

मुझे काटकर बनवा लोगे
कुरसी-मेज-तिपाई
या पलंग या खटिया-पटिया
कुछ चीजें सुखदायी
अपनी बैठक सजा-धजाकर
बढ़वा लोगे शान
(पर) मत काटो, मत चीरो मुझको
मुझमें भी हैं प्राण।
अपने तुच्छ सुखों के कारण
मत लो मेरी जान।

            - 3 -

समय-समय पर फल देता हूँ
देता सुन्दर फूल
जड़ से लेकर फुनगी तक हूँ
औषधि के अनुकूल
किसी तरह भी तुच्छ नहीं है
मेरा भी अवदान
मत काटो, मत चीरो मुझको
मुझमें भी हैं प्राण।
अपने तुच्छ सुखों के कारण
मत लो मेरी जान।
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संग्रह के ब्यौरे
आलोक का अट्टहास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - सत्साहित्य प्रकाशन,
          205-बी, चावड़ी बाजार, 
          दिल्ली-110006
सर्वाधिकार - सुरक्षित
संस्करण - प्रथम 2003
मूल्य - एक सौ पच्चीस रुपये
मुद्रक - नरुला प्रिण्टर्स, दिल्ली



















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