बच्चों के लिए
श्री बालकवि बैरागी की
तेईस छोटी-छोटी कविताओं की किताब
‘गीत बहार’
श्री बालकवि बैरागी की
तेईस छोटी-छोटी कविताओं की किताब
‘गीत बहार’
सोचो-समझो
सोचो-समझो और विचारो
पेड़ों को पत्थर मत मारो।
समझाता हमको विज्ञान
उनमें भी होती है जान।।
सीख
सबसे हँसकर मीठा बोलो
हमें बड़ों ने यही सिखाया।
यही अगर हम सीख सके तो
समझो जीवन सफल बनाया
गाय और बछड़ा
चाट रही गैया बछड़े को
पिला रही है अपना दूध।
कूद रहा मस्ती से बछड़ा
लम्बी, ऊँची, नीची, कूद
टेलीफोन
फोन पर घण्टी ज्यों ही बजती
दीदी कहती - चलो! चलो!!
(पर) कुछ भी नहीं सुनाई पड़ता
करते रहिये हलो! हलो!!
नानी
नानी मेरी प्यारी नानी,
बातें करती बड़ी सयानी।
मुझे कहानी रोज सुनाती,
मम्मी तक को डॉट पिलाती।।
सिपाही
कन्धे पर बन्दूक चढ़ा कर,
ज्यों ही चला सिपाही।
थर-थर लगा काँपने दुश्मन,
शामत आई! शामत आई!!
भेद-भाव
चाचाजी ने कुत्ता पाला,
चाचीजी ने बिल्ली।
मैंने जब तोता पाला तो,
गुस्सा हो गई दिल्ली।।
पाप-मम्मी और मैं
पापाजी ने कार खरीदी,
मम्मीजी ने साड़ी।
मैंने आइस्क्रीम खरीदी,
तब चल पाई गाड़ी।।
सेठ
नुक्कड़-नुक्कड़ रीछ नाचता।
और कूटता पेट।
मुफ्त ममाशा देख-देख कर,
तोंद खुजाता सेठ।।
व्हेरी सॉरी
हमको समझाओ टीचरजी,
आखिर है ये किसकी मर्जी।
बच्चे हल्के, बस्ता भारी,
सॉरी, सॉरी, व्हेरी सॉरी।।
सच्चाई
कलियों पर मँडराते भँवरे,
फूलों पर मँडराती तितली।
बगिया में जाकर देखो तो,
दोनों बातें सच्ची निकलीं।।
कम्प्यूटर
घर मे कम्प्यूटर क्या आया,
दुनिया भर की बातें लाया।
बिजली हो तो करता काम,
वरना करता है आराम।।
हाथी-घोड़ा-गधा
हाथी को लगता है अंकुश,
घोड़े को लगती है लगाम।
ऊँट माँगता है नकेल,
गधे को डण्डे से काम।।
वन
तन - मन - धन,
सबसे ऊपर वन।
वन का मतलब जंगल,
जंगल करता सबका मंगल।।
अजब मेहमान
सदा नाक पर बैठा रहता,
और खींचता कान।
आँखों के घर चश्मा आया,
बड़ा अजब मेहमान।।
बन्दर की शादी
एक मदारी बन्दर लाया,
चौराहे पर खेल दिखाया।
खेल-खेल में कर दी शादी,
ऐसे खत्म हुई आजादी।।
एक गिलहरी
एक गिलहरी बित्ते भर की,
जा बैठी टहनी के सर पर।
इससे हम इतना तो सीखें,
बैठे नहीं रहें हम घर पर।।
नदी की नसीहत
नदिया बहती कल-कल-कल,
सबसे कहती - चल भई! चल!
चलना है जीवन का नाम,
इसमें थकने का क्या काम?
कोयल-मैना-कौआ
कोयल कुहू-कुहू कर गाती,
मीठे सुर में गाती मैना।
काँव-काँव करते कौवे को,
मौसम से क्या लेना-देना?
कौन क्या देता?
पेड़ हमें देते हैं फल,
पौधे देते हमको फूल।
मम्मी हमको बस्ता देकर,
कहती है जाओ स्कूल।।
बगीचे की बातें
तितली करती ताथा थैया,
भँवरा करता गुन-गुन-गुन।
खिलकर हँसते फूल हमेशा,
कलियाँ कहतीं, हमें न चुन।।
एक हिमालय
जब से हम स्कूल गए हैं,
खेल-कूद सब भूल गए हैं।
सब कहते हैं - पढ़ो, पढ़ो,
एक हिमालय रोज चढ़ो।।
माली
माली वो जो जड़ को सींचे,
हर डाली को प्यार करे।
कली-कली को फूल बनाए,
खुशबू का सत्कार करे।।
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संग्रह के ब्यौरे
गीत बहार - बाल गीत
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - सन शाइन बुक्स, 4760-4761, द्वितीय तल, 23 अंसारी रोड़, दरियागंज, नई दिल्ली-110002
प्रकाशन वर्ष और मूल्य के ब्यौरे उपलब्ध नहीं।
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