श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘शीलवती आग’ की अठारहवीं कविता
चुनाव: मेरा खेत, मेरी फसल
‘शीलवती आग’ की अठारहवीं कविता
चुनाव: मेरा खेत, मेरी फसल
मैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ
उन गड़रियों की
जो अपनी-अपनी भेड़ें लेकर आते हैं
और मेरी फसलें
बड़े इत्मीनान से चराते हैं।
मैं जानता हूँ कि
वे रेवड़ के रवड़ लेकर आवेंगे
मेरी फसलों को चरावेंगे
और देखते-देखते
उनमें से कई भेड़ें
बदल जायेंगी भेड़ियों में।
तब पहिये लगाकर ऐड़ियों में
ओझल हो जायेंगे वे गड़रिये।
अपने उजड़ते खेतों को देखता रहूँगा मैं
आराम से चरती रहेंगी वे भेड़ियानुमा भेड़ें।
खेत का रखवाला मैं
अपनी फसल के लिए कभी नहीं रोया
तसलल्ली इसी बात की है कि
अभी तक मैंने अपना खेत नहीं खोया।
हर बार लगता है कि
ये भेड़ें आज या कल कट जायेंगी
पर वे कटती नहीं हैं।
सुरक्षित हैं उनके रेवड़
आश्वस्त है उनकी बिरादरी।
मस्त हैं उनके गड़रिये।
मेरी इस दरिद्र तटस्थता पर
आहत हैं मेरे बच्चे
मेरा ठण्डापन उबाल देता है
उनके रक्त को।
वे वैसा कुछ करना चाहते हैं
जो उनसे हो नहीं पाता।
और इधर मैं इसलिए सो नहीं पाता
कि दिन-ब-दिन बंजर होता जा रहा है
मेरा खेत।
कसूर न भेड़ों का है न गड़रियों का
कसूरवार हूँ मैं।
मेरे बच्चों!
बंजर होते हुए खेत को बचा लो
भूल जाओ रिश्ता
काट डालो मुझे
पी जाओ मेरा खून
मैं मरूँ या जियूँ
यह खेत, यह खेती तुम्हीं को सम्हालनी है।
आज उछालो या कल
इन भेड़ों, भेड़ियों और गड़रियों की
मूण्डियाँ तुम्हीं को
हवा में उछालनी हैं।
मेरी दरिद्र तटस्थता को कतई मत सहो
बेशक मैं तुम्हारा बाप हूँ
पर अपनी विरासत का रखवाला
मुझे मत कहो ।
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उन गड़रियों की
जो अपनी-अपनी भेड़ें लेकर आते हैं
और मेरी फसलें
बड़े इत्मीनान से चराते हैं।
मैं जानता हूँ कि
वे रेवड़ के रवड़ लेकर आवेंगे
मेरी फसलों को चरावेंगे
और देखते-देखते
उनमें से कई भेड़ें
बदल जायेंगी भेड़ियों में।
तब पहिये लगाकर ऐड़ियों में
ओझल हो जायेंगे वे गड़रिये।
अपने उजड़ते खेतों को देखता रहूँगा मैं
आराम से चरती रहेंगी वे भेड़ियानुमा भेड़ें।
खेत का रखवाला मैं
अपनी फसल के लिए कभी नहीं रोया
तसलल्ली इसी बात की है कि
अभी तक मैंने अपना खेत नहीं खोया।
हर बार लगता है कि
ये भेड़ें आज या कल कट जायेंगी
पर वे कटती नहीं हैं।
सुरक्षित हैं उनके रेवड़
आश्वस्त है उनकी बिरादरी।
मस्त हैं उनके गड़रिये।
मेरी इस दरिद्र तटस्थता पर
आहत हैं मेरे बच्चे
मेरा ठण्डापन उबाल देता है
उनके रक्त को।
वे वैसा कुछ करना चाहते हैं
जो उनसे हो नहीं पाता।
और इधर मैं इसलिए सो नहीं पाता
कि दिन-ब-दिन बंजर होता जा रहा है
मेरा खेत।
कसूर न भेड़ों का है न गड़रियों का
कसूरवार हूँ मैं।
मेरे बच्चों!
बंजर होते हुए खेत को बचा लो
भूल जाओ रिश्ता
काट डालो मुझे
पी जाओ मेरा खून
मैं मरूँ या जियूँ
यह खेत, यह खेती तुम्हीं को सम्हालनी है।
आज उछालो या कल
इन भेड़ों, भेड़ियों और गड़रियों की
मूण्डियाँ तुम्हीं को
हवा में उछालनी हैं।
मेरी दरिद्र तटस्थता को कतई मत सहो
बेशक मैं तुम्हारा बाप हूँ
पर अपनी विरासत का रखवाला
मुझे मत कहो ।
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संग्रह के ब्यौरे
शीलवती आग (कविता संग्रह)
कवि: बालकवि बैरागी
प्रकाशक: राष्ट्रीय प्रकाशन मन्दिर, मोतिया पार्क, भोपाल (म.प्र.)
प्रथम संस्करण: नवम्बर 1980
कॉपीराइट: लेखक
मूल्य: पच्चीस रुपये
मुद्रक: सम्मेलन मुद्रणालय, प्रयाग
यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
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