श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘आलोक का अट्टहास’ की आठवीं कविता
‘आलोक का अट्टहास’ की आठवीं कविता
खाली म्यान
न लिखना
न पढ़ना
न बोलना
न मुँह खोलना
और-तो-और
सोचना तक नहीं।
न पढ़ना
न बोलना
न मुँह खोलना
और-तो-और
सोचना तक नहीं।
क्या हो गया है
इन लोगों को?
पराश्रित चेतना का
यह असूर्य समय
कब बीतेगा?
तुम यह सब
कब तक करते रहोगे
इनके लिए?
उन पर चस्पा
आलोचनाओं के
उत्तर भी
तुम दो।
भूले भटके
कभी तमतमा जाएँ वे
तो कठघरे में भी
तुम्हें ही खड़ा करें।
सफाई भी तुमसे हो माँगें
वल्दियत तक तुम्हीं से पूछें
सजा भी तुम्हें हो मिले।
और वे?
बस गढ़ते रहें अपने
निकम्मेपन की सुरक्षा
के किले।
क्या हो गया है
इनकी चेतना को ?
ऐसी मरी अस्मिता,
ऐसी डरी इयत्ता
जो बिना पतझर
झरे पत्ता-पत्ता
कभी नहीं देखी
फिर भी वे
बघारते हैं शेखी
किवे, सिर्फ वे ही
सच हैं।
बाकी तो सब हैं
कचरे कूड़ेदान के
राम! हे राम!
तलवार कब तक
नखरे सहे
इस खाली म्यान के ?
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संग्रह के ब्यौरे
आलोक का अट्टहास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - सत्साहित्य प्रकाशन,
205-बी, चावड़ी बाजार,
दिल्ली-110006
सर्वाधिकार - सुरक्षित
संस्करण - प्रथम 2003
मूल्य - एक सौ पच्चीस रुपये
मुद्रक - नरुला प्रिण्टर्स, दिल्ली
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