श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘आलोक का अट्टहास’ की पन्द्रहवीं कविता
‘आलोक का अट्टहास’ की पन्द्रहवीं कविता
इस वक्त
भूकम्प के भय से भयभीत होकर
हम
घर बनाना नहीं छोड़ते।
बाढ़ों से टूटने पर भी
तटवासी अपना तटवास
नहीं तोड़ते।
मृत्यु के डर से
मृत्युंजय मानव
मुँह पर कफन नहीं ओढ़ते।
हम
घर बनाना नहीं छोड़ते।
बाढ़ों से टूटने पर भी
तटवासी अपना तटवास
नहीं तोड़ते।
मृत्यु के डर से
मृत्युंजय मानव
मुँह पर कफन नहीं ओढ़ते।
भूकम्प, बाढ़ और मृत्यु को
नए अर्थ देता है संघर्ष
नया बोध देती है जिजीविषा
यही समय है जब हम
जगाएँ अपनी जिजीविषा को
ललकारें अपने संघर्ष को
और
मरने नहीं दें
अपनी मनीषा को।
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संग्रह के ब्यौरे
आलोक का अट्टहास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - सत्साहित्य प्रकाशन,
205-बी, चावड़ी बाजार,
दिल्ली-110006
सर्वाधिकार - सुरक्षित
संस्करण - प्रथम 2003
मूल्य - एक सौ पच्चीस रुपये
मुद्रक - नरुला प्रिण्टर्स, दिल्ली
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