एक निर्लज्ज प्रश्न: बदले परिवेश से

 




श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘शीलवती आग’ की तीसवीं कविता 





एक निर्लज्ज प्रश्न: बदले परिवेश से

ताशकन्द से विजयघाट तक
यह कैसी खामोशी?
रक्त-ज्वार का शोर कहाँ है
यह कैसी नामोशी ?
क्या रहस्य की गाँठें बोलो
अब भी नहीं खुलेंगी?
तुम जिसको कालिख कहते थे ;
अब भी नहीं धुलेगी?
क्यों ललिता की माँग सुहागन
हुई अचानक रीती?
अनाघात आघात हुआ क्यों?
वामन पर क्या बीती?
घाव-घाव से परिचित हो तुम
ओ बदले परिवेश!
सारे उत्तर माँग रहा है
तुमसे मेरा देश।
अमन-अमन! कह करके हमको
तुम तो मत बहकाओ।
ताशकन्द से अब तो पूछो
सत्य प्रकट करवाओ।
ओ दिल्ली के देव फरिश्तों!
नये नये अवतारों!
राजनीति के शब्दकोश को
तुम तो जरा सुधारो।
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संग्रह के ब्यौरे
शीलवती आग (कविता संग्रह)
कवि: बालकवि बैरागी
प्रकाशक: राष्ट्रीय प्रकाशन मन्दिर, मोतिया पार्क, भोपाल (म.प्र.)
प्रथम संस्करण: नवम्बर 1980
कॉपीराइट: लेखक
मूल्य: पच्चीस रुपये 
मुद्रक: सम्मेलन मुद्रणालय, प्रयाग




यह  संग्रह  हम  सबकी  ‘रूना’  ने उपलब्ध कराया है। ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।



रूना के पास उपलब्ध, ‘शीलवती आग’ की प्रति के कुछ पन्ने गायब थे। संग्रह अधूरा था। कृपावन्त राधेश्यामजी शर्मा ने गुम पन्ने उपलब्ध करा कर यह अधूरापन दूर किया। राधेश्यामजी, दादा श्री बालकवि बैरागी के परम् प्रशंसक हैं। वे नीमच के शासकीय मॉडल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में व्याख्याता हैं। उनका पता एलआईजी 64, इन्दिरा नगर, नीमच-458441 तथा मोबाइल नम्बर 88891 27214 है। 














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