यह संग्रह दा’ साहब श्री माणक भाई अग्रवाल को समर्पित किया गया है।
झर गए पात
झर गए पात,
बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी
झर गए पात.....
करुण कथा जग से क्या कहनी
झर गए पात.....
-1-
नव पल्लव के आते-आते
टूट गए सब के सब नाते
राम करे इस नव पल्लव को
पड़े नहीं, यह पीड़ा सहनी
झर गए पात, बिसर गई टहनी
टूट गए सब के सब नाते
राम करे इस नव पल्लव को
पड़े नहीं, यह पीड़ा सहनी
झर गए पात, बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी
-2-
कहीं रंग है? कहीं राग है
कहीं चंग है, कहीं फाग है
और धूसरित पात-नाथ को
टुक-टुक देखे शाख विरहनी
झर गए पात, बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी
-3-
पवन पाश में पड़े पात ये
जनम-मरण में रहे साथ ये
‘वृन्दावन’ की श्लथ बाँहों में
समा गई ऋतु की ‘मृगनयनी’
झर गए पात, बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी
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संग्रह के ब्यौरे
दो टूक (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली।
पहला संस्करण 1971
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - छः रुपये
मुद्रक - रूपाभ प्रिंटर्स, शाहदरा, दिल्ली।
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