केरल से करगिल घाटी तक

 

श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘दो टूक’ की बत्तीसवीं कविता 

यह संग्रह दा’ साहब श्री माणक भाई अग्रवाल को समर्पित किया गया है।



केरल से करगिल घाटी तक

केरल से करगिल घाटी तक,
गौहाटी से चौपाटी तक
सारा देश हमारा

जीना हो तो मरना सीखो
गूँज उठे यह नारा
सारा देश हमारा

लगता है ताजे लोहू पर,जमी हुई है काई
लगता है फिर भटक गई है, भारत की तरुणाई
काई चीरो ओ! रणधीरो
ओ जननी की भाग्य लकीरों
बलिदानों का पुण्य मुहूरत, आता नहीं दुबारा
जीना हो तो मरना सीखो,गूँज उठे यह नारा
सारा देश हमारा...

घायल अपना ताजमहल है, घायल गंगा मैया
टूट रहे हैं तूफानों में, नैया और खिवैया
तुम नैया के पाल बदल दो
तूफानों की चाल बदल दो
हर आँधी का उत्तर हो तुम, तुमने नहीं विचारा
जीना हो तो मरना सीखो, गूँज उठे यह नारा
सारा देश हमारा...

कहीं तुम्हें परबत लड़वा दें, कहीं लड़ा दे पानी
भाषा के नारों में गुम है, मन की मीठी वाणी
आग लगा दो इन नारों में
इज्जत आ गई बाजारों में
कब धधकेंगे सोये सूरज, कब होगा उजियारा
जीना हो तो मरना सीखो, गूँज उठे यह नारा
सारा देश हमारा...

संकट अपना बाल सखा है, इसको गले लगाओ
क्या बैठे हो न्यारे-न्यारे, मिल कर बोझ उठाओ
भाग्य भरोसा कायरता है
कर्मठ देश कहाँ मरता है
सोचो तुमने इतने दिन में, कितनी बार हुँकारा
जीना हो तो मरना सीखो, गूँज उठे यह नारा
सारा देश हमारा...
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संग्रह के ब्यौरे
दो टूक (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली।
पहला संस्करण 1971
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - छः रुपये
मुद्रक - रूपाभ प्रिंटर्स, शाहदरा, दिल्ली।
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यह संग्रह हम सबकी रूना ने उपलब्ध कराया है। रूना याने रौनक बैरागी। दादा स्व. श्री बालकवि बैरागी की पोती। राजस्थान प्रशासकीय सेवा की सदस्य रूना, यह कविता यहाँ प्रकाशित होने के दिनांक को उदयपुर में, सहायक आबकारी आयुक्त के पद पर कार्यरत है।























 


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