यौवन के उत्पात वसन्ती


  


श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘ओ अमलतास’ की नौवीं कविता 

यह संग्रह श्री दुष्यन्त कुमार को
समर्पित किया गया है।




यौवन के उत्पात बसन्ती

दिन वासन्ती रात बसन्ती
युग का पुण्य प्रभात बसन्ती

पनघट-पनघट रस की बातें
ऋतुराजा की चढ़ी बरातें
दिशा-दिशा से बरस रही है
रंग-रस की बरसात 
बसन्ती
दिन वासन्ती रात बसन्ती

बगिया लीपे किरण किशोरी
हाँ-हाँ उस सूरज की छोरी
ऋतु कुँवरी सरवर में उतरी
लेने को जलजात बसन्ती
दिन वासन्ती रात बसन्ती

भँवरे गाए कोयल बोले
कलियों ने सब घूँघट खोले
बगिया-बगिया होने लग गये
यौवन के उत्पात बसन्ती
दिन वासन्ती रात बसन्ती
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‘ओ अमलतास’ की आठवीं कविता ‘सेनापति के नाम’ यहाँ पढ़िए

‘ओ अमलतास’ की दसवीं कविता ‘आलिंगन के बाहर भी प्रिय!’ यहाँ पढ़िए 




संग्रह के ब्यौरे
ओ अमलतास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - किशोर समिति, सागर।
प्रथम संस्करण 1981
आवरण - दीपक परसाई/पंचायती राज मुद्रणालय, उज्जैन
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - दस रुपये
मुद्रण - कोठारी प्रिण्टर्स, उज्जैन।
मुख्य विक्रेता - अनीता प्रकाशन, उज्जैन
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