यह संग्रह दा’ साहब श्री माणक भाई अग्रवाल को समर्पित किया गया है।
आतप में झुलसा वन
आतप में झुलसा वन
तृण-तृण कँगनाया
हिरना अकुलाया
आतप में झुलसा वन
तृण-तृण कँगनाया
हिरना अकुलाया
मेड़ों की कजराई छूट गई ढेलों पर
मौसम का जूड़ा है अधभूखे बैलों पर
मोर भगे मेड़ों से
अध नंगे पेड़ों से, जेठा टकराया
हिरना अकुलाया
सामन्ती सूरज का पाकर उकसावा
चिपट गया छप्पर से किरनों का लावा
बौरों की भीड़ जुड़ी
टेसू की नींद उड़ी, पानी पथराया
हिरना अकुलाया
ऊँघ रही अमराई सन्नाटा आगे
सूरज को सरकावे कौन जरा आगे
तिनकों की आम सभा
चुप्पी का दाँव लगा, सबको बहकाया
हिरना अकुलाया
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संग्रह के ब्यौरे
दो टूक (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली।
पहला संस्करण 1971
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - छः रुपये
मुद्रक - रूपाभ प्रिंटर्स, शाहदरा, दिल्ली।
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दो टूक (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली।
पहला संस्करण 1971
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - छः रुपये
मुद्रक - रूपाभ प्रिंटर्स, शाहदरा, दिल्ली।
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यह संग्रह हम सबकी रूना ने उपलब्ध कराया है। रूना याने रौनक बैरागी। दादा स्व. श्री बालकवि बैरागी की पोती। राजस्थान प्रशासकीय सेवा की सदस्य रूना, यह कविता यहाँ प्रकाशित होने के दिनांक को उदयपुर में, सहायक आबकारी आयुक्त के पद पर कार्यरत है।
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