श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘रेत के रिश्ते’
की सत्ताईसवीं कविता
‘रेत के रिश्ते’
की सत्ताईसवीं कविता
यह कविता संग्रह
श्री पं. भवानी प्रसादजी मिश्र को
समर्पित किया गया है।
अँधेरे में गा रहा हूँ
अँधेरे में गा रहा हूँ
किसी किरन के लिए।
कह रहा हूँ सबसे कि
तुम भी गाओ,
पर गाता कोई नहीं,
समवेत होने, आता कोई नहीं।
हामी तो सभी भरते हैं
पर राम जाने किससे डरते हैं?
कह रहा हूँ सबसे कि
तुम भी गाओ,
पर गाता कोई नहीं,
समवेत होने, आता कोई नहीं।
हामी तो सभी भरते हैं
पर राम जाने किससे डरते हैं?
प्राण नहीं छटपटाता किसी का
घुटता तो है दम
पर निगल जाते हैं घूँट की तरह घुटन को
वे जाने किस तरह समझा लेते हैं
मन को।
जानता तो मैं भी हूँ कि
किरन को आना है, वह आयेगी।
काजल लगी चाँदनी को जाना है,
वह जायेगी।
पर सोचता हूँ कि
मेरे किये यह हो जाये,
इस अँधेरे में और कुछ नहीं तो
मेरी और तुम्हारी कायरता ही
खो जाये।
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रेत के रिश्ते - कविता संग्रह
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - साँची प्रकाशन, बाल विहार, हमीदिया रोड़, भोपाल
प्रथम संस्करण - नवम्बर 1980
मूल्य - बीस रुपये
मुद्रक - चन्द्रा प्रिण्टर्स, भोपाल
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