बर्लिन से बब्बू को
दूसरा पत्र - दूसरा हिस्सा
खेतों में इस समय यहाँ मक्का की फसल खड़ी है। मेरी-तेरी छाती बराबर ऊँची फसल होगी। कच्ची मक्का यहाँ सूअरों की खिलाई जाती है। उनके खाने से जो बच जाती है वह सूखने पर घर आती है और फिर उसे विशेष तौर पर भून कर नमकीन बनाकर काजूनुमा फूलों की तरह खाया जाता है या फिर सलाइयों जैसे मुरमुरे लम्बे बिस्कुट बनाकर चाय काफी और शराब के साथ सेवन किया जाता है।
पशुओं में अभी तक कुत्तेे, बिल्ली, सुअर, घोड़े और गायें ही हमें यहाँ देखने को मिली। गायें यहाँ सफेद या लाल नहीं होतीं। वे काली, कबरी, कजरी और कपिला होती हैं। सींग छोटे, सामने की ओर और पैने। एक भी गाय दुबली या मरियल नहीं देखी। खूब दूध देती है। थन भरे और फटते से दिखाई पड़ते हैं। दूध उतना ही स्वस्थ और नीरोग। मैं साँझ सवेरे डटकर दूध पीता हूँ। 24 अगस्त की शाम को डाक्टर संघई साहब की मशीन पर 67 किलो तुलकर बस में बैठा था। कल शाम को यहाँ तुला तो 69 किलो उतरा हूँ। कुल 19 दिन की खुराक, भ्रमण और आत्म सन्तोष का यह पुरुस्कार मिला। शाकाहारी भोजन यद्यपि इतना रुचिकर नहीं होता, तो भी इतना पुष्ट होता है कि जिस समय हमारी शिष्ट मण्डल यहाँ पहिले दिन खाना खाने बैठा था तब शाकाहारी के नाम पर हम कुल तीन व्यक्ति थे। पर आज? 15 में से 9 शाकाहारी टेबल पर बैठते हैं। मजा तब आता है जब कि अण्डा शाकाहारियों को भी परोस दिया जाता है। हम केवल दो व्यक्ति हैं जो अण्डा भी नहीं खाते। सारी प्लेटें फिर से लगाई जाती हैं। अण्डे की सामग्री हटाई जाती है। शाकाहारियों को उबली सब्जियाँ और ब्रेड, मक्खन आदि मिलता है। दूध, दही खूब खाओ। सामिष लोग यहाँ के मांस से ऊब गये। मछली, मुर्गी तो खाते ही हैं यहाँ ‘बीफ’, जिसे गौमांस कहते हैं खूब खाया जाता है। जब खाना शुरु होता है तब आनन्द यह आता है कि शाकाहारी लोग तो सामिष भोजन की चर्चा करते हैं और सामिष लेने वाले शाकाहारी भोजन की बातें करते पाये जाते हैं। व्यवस्थापकों सहित यह दल कोई 22 लोगों का है पर इन 22 ही लोगों को होटल में एक ही कन्या बिना किसी हड़बड़ी और तनाव के हँसते-मुस्कुराते आराम से खाना खिला देती है। इन कन्याओं की संख्या कभी तीन से अधिक नहीं बढ़ी। शराब भी ये ही प्रस्तुत करती हैं।
इन 22 लोगों में हमारी बस का ड्रायवर भी शामिल है। कितना अच्छा लगता है जब नाश्ता करते समय और खाना खाते समय तथा घूमते, देखते समय ड्रायवर भी साथ ही खाता-पीता और बैठता है। व्यवस्थापक दल में दो तो दुभाषिये हैं। एक श्री क्लोफर, मूलतः आस्ट्रियन। खूब हँसोड़ और विनोदी। जी. डी. आर. के ट्रांसलेशन ब्यूरो में चीफ ट्रांसलेटर हैं। अनुवाद इतना सजीव और विनोदपूर्ण करते हैं कि सुनने वाले बाग-बाग हो जाते हैं। दूसरी हैं श्रीमती ईरीज कोबा। कल तक हम उसे कुमारी समझते थे। वह श्रीमती निकली। नई-नई अनुवादिका है। सीख रही है। फिर है
श्रीमती रुथ के साथ दादा। चित्र भोजन के समय का है। श्रीमती रुथ ने मनुहार की 'कोनिया लीजिए।'
दादा ने जवाब दिया - 'धन्यवाद। मैं शराब नहीं पीता।' कोनिया वहां की स्थानीय शराब है।
व्यवस्थापिका श्रीमती रुथ और श्रीमती ईमी। गये पत्र में मैं श्रीमती ईमी को श्रीमती एन लिख गया था। डॉ. गुन्थर अगली व्यवस्था के लिए बर्लिन चले गये हैं। और प्रथम मानो या अन्तिम सदस्य है हमारा ड्रायवर। इस देश में काम और कर्मठता की पूजा होती है। पदों की नहीं। डॉ. गुन्थर इस दल के सर्वोच्च आफिसर हैं पर हम लोग बड़े से बड़े पदासीन लोगों से मिले तब भी हमारा ड्रायवर साथ था। आज इस काउन्टी के उपाध्यक्ष की बराबरी में उनका व हमारा ड्रायवर इत्मीनान से खाना खा रहा था। मनुष्य यहाँ समानता का व्यवहार पाते हैं और करते हैं। यदि तनख्वाह से ही मामला जाँचा जाय तो हमारे बस ड्रायवर की तनख्वाह है 650 मार्क याने 2600 भारतीय रुपये। सामान्य जीवन में यह देश व्यक्ति को पद से नहीं नापता।
दूसरा पत्र: तीसरा हिस्सा निरन्तर
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