बर्लिन से बब्बू को
दूसरा पत्र - तीसरा हिस्सा
अपने कामगारों, किसानों और बुद्धिजीवियों की सुख सुविधा का सारा माध्यम यहाँ की ट्रेड यूनियनें हैं। हर व्यक्ति को वर्ष में 13 दिन का सवेतन अवकाश मिलता है। इस अवकाश को ये लोग समुद्र के किनारे बने होलीडे होम्स (अवकाश गृहों) में पूरी मस्ती के साथ बिताते हैं। कल शनिवार को हम लोगों को ऐसे ही एक हालीडे होम में ले जाया गया। अकेले रोस्तोक प्रान्त के पास छुट्टियाँ मनाने के लिये ऐसे 35 हजार शेडों की व्यवस्था है। एक शेड में दो व्यक्ति आराम से पाँव पसार कर समुद्र के किनारे स्नानावकाश, मालिश और धूपस्नान का आनन्द लेते हैं। 13 दिनों के लिये प्रति व्यक्ति केवल 75 मार्क याने 300 भारतीय रुपये चुकाने होते हैं। बच्चे के 30 मार्क अलग। इस तरह यदि पति, पत्नि और एक बच्चा अवकाश मनाने आयें तो उन्हें 720 भारतीय रुपयों में पूरे 13 दिन तक हर सुविधा (खाना, पीना, नाश्ता, स्नान, शेड और होटल) ट्रेड यूनियन देती है। यह घर से भी सस्ता होता है। शेड का तात्पर्य है छायादार छोटी सी गुमटी। समुद्री हवा से बचने के लिए शेड की पीठ समुद्र की तरफ करके, सूर्य की ओर मुँह करे, पति पत्नि या प्रेमी युगल केवल स्नान के कपड़ों में सारा दिन समुद्र स्नान और धूप स्नान का आनन्द लेते हैं। कल हम लोगों ने कोई 6 या 7 हजार जोड़े इस तरह एक साथ देखे। मक्खन की तरह गोरी काया वाली इतनी महिलाओं और पुरुषों को करीब-करीब 90 फीसदी नग्न देखने का यह हमारा पहला अवसर था। कई मित्रों की बाँछे खिल गईं पर कई की घिग्गी बँध गई। निस्संकोच जोड़े अपने कलापों में लगे हुए थे। हमें इस अवकाशगृह के डायरेक्टर ने कहा कि आप चाहें जिससे, चाहें जो बात कर सकते हैं पर बात कौन कर सकता था! इन अवकाश गृहों में युवा विद्यार्थियों का प्रवेश बिना किसी झिझक के वर्जित है। उनके लिए अलग से अवकाश गृह बने हुए हैं। इस अवकाश गृह का चरम अभी आगे है। डायरेक्टर ने बताया कि समुद्री हवा में नमक के कारण प्रायः यहाँ चर्म रोग बहुत हो जाते हैं। इसलिए कई नर-नारी अपने चर्म रोगों का ईलाज करवाने, डॉक्टरों की सलाह से यहाँ भेजे जाते हैं। डायरेक्टर महोदय ने एक लकड़ी के बाड़े की तरफ इशारा किया। समुद्र तट से बिलकुल लगा यह बाड़ा एक दम सामान्य था पर जब उसके भीतर धूप ले रहे और खेलते कूदते सैंकड़ों स्त्री पुरुषों को हमने देखा तो हमारे दीदे फटे रह गये। सैकड़ों स्त्री पुरुष चर्म रोग का अद्भुत ईलाज कर रहे थे। उनके पास नाम मात्र को भी कपड़ा नहीं था। अद्भुत संकोचहीनता थी। अविश्वसनीय दृश्य था। इतने, बिलकुल नंगे लोग इस तरह उछलते-कूदते जीवन में किसी भी भारतीय ने नहीं देखे होंगे। ओफ! क्या नजारा था! वे अपनी दुनिया में मस्त थे। हम काठ होते जा रहे थे।
इस अवकाश गृहों में दो मौसम अवकाश मनाने के होते हैं। एक शरदावकाश और दूसरा ग्रीष्मावकाश। अगली योजना में कोई 50 लाख लोगों के लिए इस तरह के अवकाश गृहों का प्रावधान किया जा रहा है। अभी यह संख्या शायद 10 लाख तक ही सीमित है।
दूसरा पत्र: चौथा हिस्सा निरन्तर
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