सुरेश भाई को इस तरह देख कर झटका लगा। विश्वास ही नहीं हुआ कि मैं इक्कीसवीं सदी में यह देख रहा हूँ। याद नहीं आता कि ऐसा दृष्य इससे पहले कब देखा था। मेरी दशा देख कर सुरेश भाई मुस्कुरा कर बोले - ‘विश्वास नहीं हो रहा न? मुझसे तो कम्प्यूटर पर काम हो नहीं पाता। मैं अब भी इसी तरह काम करता हूँ।’
सुरेश भाई याने रतलाम के चाँदनी चौक स्थित ‘चौधरी ब्रदर्स’ वाले सुरेश चौधरी। बिजली के सामान की, पीढ़ियों पुरानी दुकान है। इतनी पुरानी कि बस! नाम ही काफी है। काम लम्बा-चौड़ा है। चार भाई, सुरेश, जयन्ती, राजेन्द्र और जवाहर मिल कर सम्हालते हैं। सबने अपना-अपना काम बाँट रखा है। बड़े ग्राहक दुकान पर नजर नहीं आते। नजर आएँ भी कैसे? भाई लोग उनके दफ्तरों में पहुँच कर उनके काम जो कर देते हैं! देहात के ग्राहकों का जमावड़ा दिन भर लगा रहता है। मैं महीने-दो महीने में मिलने चला जाता हूँ। लेकिन सुरेश भाई को इस तरह, पारम्परिक ढंग से काम करते कभी नहीं देखा।
मैं जब एक औद्योगिक इकाई में भागीदार था तो हमारे यहाँ रजिस्टरों के आकारवाली केश-बुक और लेजर काम में आते थे। पारम्परिक खाता बहियाँ देखे मुझे बरसों हो गए। मनासा से निकलने के बाद रतलाम में भी दुकानों पर लाल रंग की खाता-बहियों में काम करते किसी को नहीं देखा। सुरेश भाई को देखा तो मुझे मानो ‘नास्टेल्जिया’ ने घेर लिया।
सुरेश भाई न केवल पारम्परिक खाता-बही में हिसाब-किताब रखते हैं, लिखने के लिए भी वे बॉल-पेन के बजाय स्याहीवाला पेन ही वापरते हैं। कहते हैं कि हर बरस स्याहीवाला नया पेन खरीदते हैं। स्याही की दावात जरूर दो-ढाई बरस में खरीदनी पड़ती है। स्याही सोखनेवाला कागज (स्याही सोख्ता याने कि ब्लाटिंग पेपर) तनिक कठिनाई से मिलता है। इसलिए उसे अतिरिक्त सावधानी से वापरते हैं।
मैं पहुँचा तब सुरेश भाई का काम पूरा होने को था। मैंने फटाफट ये फोटू लिए। आप भी देखिए और अपना गुजरा जमाना तो याद कीजिए ही, अपने बच्चों को भी इसके बारे में बताइए।
खाता बही में प्रविष्टियाँ करते हुए सुरेश भाई
पेन में स्याही भरते हुए सुरेश भाई
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बही खाते का तो सौभाग्य नहीं मिला पर फाउन्टेन पेन मेरी पहली पसंद है।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज शनिवार (05-01-2019) को "साक्षात्कार की समीक्षा" (चर्चा अंक-3207) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'