के प्रथम काव्य संग्रह ‘दरद दीवानी’ की बारहवीं कविता
इतिहासों के विजयी स्वर हैं, ऐसे-वैसे बैन नहीं हैं
मादक नयनों की मादकता, मदन तुम्हारी देन नहीं है?
कुन्दन काया, कंचन छाया, बोझिल यौवन वाली बाला
इतने पर भी मन न भरा तो, नयनों को मादक कर डाला
रतिपति! फिर भी पंचवटी के, रघुपति क्यों बेचैन नहीं हैं?
मादक नयनों की.....
कामुकता के साँचों में तुमने, जो कुछ भी ढाला है
उन सबको शंकित हो तुमने, मादकता में डाला है
शान्तनु सुत भीषम ने फिर भी, पाई क्यों मधु रैन नहीं है?
मादक नयनों की.....
तेरा है विश्वास कि तूने, कितने ही गढ़ जीते हैं
और अभी तक तेरे पनघट, मधु-प्यासे मधु पीते हैं
(तो) अजर जवाहर की पलकों में क्यों बौराये नैन नहीं हैं,
मादक नयनों की.....
कितने ही मादक नयनों को, मेरे होठों ने परखा है
मादकता की संज्ञा देकर, तुमने उनमें जो निरखा है
वह बय मेरी ही तो छवि है, जिसको पल भर चैन नहीं है
मादक नयनों की.....
मादक नयनों की मदिरा पर, तेरा दावा झूठा है
दाता तो सचमुच प्रियतम है, तूने तो यश लूटा है
ओ! मधु मदिरा के छलकइया, क्यों फिर तेरे ही नैन नहीं हैं?
मादक नयनों की.....
-----
यह कविता समस्या पूर्ति के अन्तर्गत लिखी गई थी।
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज निलय, बालाघाट
प्रथम संस्करण - 1100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण पृष्ठ - मोहन झाला, उज्जैन
मुद्रक - लोकमत प्रिंटरी, इन्दौर
प्रकाशन वर्ष - (मार्च/अप्रेल) 1963
No comments:
Post a Comment
आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.