के प्रथम काव्य संग्रह ‘दरद दीवानी’ की छब्बीसवीं कविता
अपमानों औ’, उपहासों में
मैं गूजरिया कब तक गाऊँ
तेरे मन्दिर तक आने में, सुनती हूँ लाखों ताने
पग-पग पर आती है आँधी, आरतियों के दीप बुझाने
इस झीने आँचल के बल पर
बतला, किस-किस से टकराऊँ
अपमानों औ’....
इस दुखियारी के दरवाजे, यदि तू इक पल आ जाये
तो, तुझको तेरी दुनिया का, सच्चा परिचय मिल जाये
बतला फिर मैं अबला होकर
किन राहों से तुझ तक आऊँ
अपमानों औ’....
लोक-लाज के लाख-करोड़ों, लाँघ गई सागर दुखियारी
फिर भी तुझसे छूट न पाई, है तेरी अनजान अटारी
कब तक तेरा पंथ निहारूँ
संयम को कब तक समझाऊँ
अपमानों औ’....
हाथों में गजरा भी पहनूँ, आँखों में कजरा भी डालूँ
अन्धे यौवन की उंगली भी, मैं ही पकड़ूँ और सम्हालूँ
आँसू भी मैं ही छलकाऊँ
छाले भी मैं ही सहलाऊँ
अपमानों औ’....
कितना मुश्किल है अलबेले, तेरी रचनाओं को गाना
आँसू पीना, रो कर जीना, अन्तर में तूफान छिपाना
क्यों पहनू मैं तेरी चूड़ी
क्यों बाबुल का नाम लजाऊँ
अपमानों औ’....
-----
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज निलय, बालाघाट
प्रथम संस्करण - 1100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण पृष्ठ - मोहन झाला, उज्जैन
मुद्रक - लोकमत प्रिंटरी, इन्दौर
प्रकाशन वर्ष - (मार्च/अप्रेल) 1963
No comments:
Post a Comment
आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.