नीलू के विवाह से जुड़ी एक ऐसी रोचक घटना है जिसका इन दोनों से कहीं, कोई सम्बन्ध नहीं। किन्तु, यदि इनके विवाह का प्रसंग नहीं होता तो यह रोचक घटना भी नहीं होती।
इन दोनों का विवाह 10 मई 1968 को मनासा में सम्पन्न हुआ था। उस समय मध्य प्रदेश में संविद (संयुक्त विधायक दल) सरकार थी। श्री गोविन्द नारायण सिंह मुख्य मन्त्री थे और श्रीमती विजया राजे सिन्धिया संविद की नेता। दादा प्रतिपक्ष के विधायक थे। श्रीमती सिन्धिया संविद सरकार की जननि थीं। उन्हीं की प्रेरणा और प्रोत्साहन से गो. ना. सिंह सहित 35/36 काँग्रेसी विधायकों ने दलबदल कर द्वारिका प्रसादजी मिश्रा की काँग्रेसी सरकार गिराई थी।
सरकार बन तो गई थी किन्तु बहुत जल्दी श्रीमती सिन्धिया और गो. ना. सिंह में मनमुटाव की स्थिति बन गई। गो. ना. सिंह श्रीमती सिन्धिया को परेशान करने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे। यदि श्रीमती सिन्धिया उनसे मिलने के लिए भोपाल से, हवाई जहाज से दिल्ली के लिये निकलतीं तो गो. ना. सिंह श्रीमती सिन्धिया के दिल्ली पहुँचते-पहुँचते, दिल्ली से भोपाल के लिए रेल से निकल जाते। श्रीमती सिन्धिया रेल से भोपाल के लिए निकलतीं तो गो. ना. सिंह, श्रीमती सिन्धिया के भोपाल पहुँचने से पहले ही हवाई जहाज से दिल्ली के लिए निकल जाते।
संविद नेत्री और मुख्य मन्त्री की इसी लुका-छुपी के दौर में नीलू की शादी का न्यौता देने के लिए दादा ने गो. ना. सिंह को फोन किया। दादा का न्यौता सुनते ही गो. ना. सिंह बोले - ‘यार! बैरागी! मैं पूरी तरह से फुरसत में हूँ। मैं मनासा आऊँगा। ठीक-ठीक तारीख और वक्त बता दे। मैं उस मुताबिक पहुँच जाऊँगा।’
जवाब सुनकर दादा घबरा गए। सरस्वती-पुत्र की जबान लड़खड़ा गई। दादा ने हकलाते हुए जवाब दिया - ‘ठाकुर सा’ब! पता नहीं आप क्या समझेंगे। मैंने आपको न्यौता जरूर दिया है। लेकिन आप आ मत जाना। मैंने तो शिष्टाचारवश ही न्यौता दिया है। आप भी इसे शिष्टाचार तक ही रखिए। आप तो पत्र से ही बच्चों को आशीर्वाद दे दीजिएगा।’
गो. ना. सिंह को लगा, दादा मजाक कर रहे हैं। बोले - ‘मजाक मत कर! मुझे भोपाल से निकलने का और राजमाताजी से बचने का बढ़िया बहाना और मौका मिल रहा है। तारीख और वक्त बता।’ दादा की घबराहट बढ़ गई। बोले - ‘मैं आपसे भला मजाक कर सकता हूँ ठाकुर सा’ब? मैं सच कह रहा हूँ, आप मत पधारिएगा। आपकी बड़ी कृपा होगी।’ गो. ना. सिंह ने बुरा नहीं माना। सहजता से बोले - ‘ठीक है। तू कहता है तो नहीं आऊँगा। लेकिन यह तो बता दे कविराज कि न्यौता देकर आने से रोक क्यों रहा है?’
गो. ना. सिंह के सहज स्वरों ने दादा को राहत दी। लम्बी साँस लेकर बोले - ‘और तो कोई बात नहीं ठाकुर सा’ब। बात यही है कि आप अकले तो आएँगे नहीं! कमिश्नर, डीआईजी, कलेक्टर, एस पी, पूरा अमला आएगा। भगदड़ मच जाएगी। सब लोग आप पर टूट पड़ेंगे। मेरी बहन की शादी एक तरफ धरी रह जाएगी। लग्न-मुहूरत चूक जाएगा। आपके आने से शोभा तो बढ़ेगी लेकिन ब्याह का मण्डप खलिहान बन जाएगा। इसीलिए आपको मना करने की धृष्टता कर रहा हूँ। हाथ जोड़ कर कह रहा हूँ, आप मत पधारिएगा।’
दादा की बात सुनकर गो. ना. सिंह हँस दिए। बोले - ‘हाँ कविराज! तेरी बात तो सही है। यह तो मैंने सोचा ही नहीं था। ठीक है। नहीं आऊँगा। तू अपनी बहन की शादी ठाठ से, खूब धूम-धाम से कर। किसी बात की तकलीफ मत देखना। मेरे जैसा कोई काम हो तो खबर कर देना।’ दादा ने धन्यवाद देते हुए कहा - ‘आपके जैसा काम आपको बता दिया और आपने हाथों-हाथ कर भी दिया। बड़ी कृपा है आपकी। इसी तरह मेरी चिन्ता और देख-रेख करते रहिएगा।’
और गो. ना. सिंह ने अपना वादा निभाया। हाँ, उन्होंने उज्जैन कमिश्नर और मन्दसौर कलेक्टर को जरूर हिदायत दी - ‘देखना! कविराज को कोई तकलीफ न हो।’ दोनों अफसरों ने दादा को अलग-अलग यह हिदायत सुनाते हुए पूछा - ‘सर! हुकुम करें।’ सुनकर दादा एक बार फिर परेशान हो गए। दोनों को एक ही जवाब दिया - ‘मनासा मेरा गाँव है। इसीने मुझे पाला-पोसा है। गाँववाले ही सब काम कर रहे हैं। मुझे कोई काम करने ही नहीं दे रहे। आपकी कृपा है। बस! आप भी वही कृपा कीजिएगा जिसकी माँग मैंने ठाकुर सा’ब से की है।’ कमिश्नर तो हँसते हुए मान गए लेकिन कलेक्टर नहीं माने। हँसते हुए बोले - ‘क्षमा करें सर! मेरे जिले का मामला है। मुझे तो आना ही है। मैं तो आऊँगा।’
इस किस्से की जानकारी नीलू-बी डी को अब तक तो नहीं ही रही होगी। यह पोस्ट पढ़कर अब हो जाएगी। लेकिन हर बरस, नीलू-बी डी की विवाह वर्ष गाँठ के साथ, इस रोचक घटना की भी वर्ष-गाँठ मैं मना लेता हूँ।
उम्र में नीलू मुझसे बहुत छोटी है लेकिन घर-गृहस्थी के मामले में मुझसे सात बरस नौ महीने अधिक अनुभवी है। नीलू-बी डी को बहुत-बहुत बधाइयाँ और शुभ-कामनाएँ। सपरिवार स्वस्थ-प्रसन्न, सकुशल रहो। खूब खुश रहो।
-----
दे रहा हूँ कि कायम रहे और आसानी से तलाशी जा सके।)
No comments:
Post a Comment
आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.