साँसों के करघे पर मैंने, गीत बुने जो रात में
बाँट दिये ना जाने किसने, सब के सब खैरात में
सारी रात जुलाहा जागा, दुखड़ों की दूकान में
ताना जोड़ा, बाना जोड़ा, करघे की तुकतान में
सुघढ़, सुघाढ़ी, बुनी बुनावट, उलझे धागे सुलझाये
पीड़ा रंगरेजिन से पक्के, अधरंग रंग में रंगवाये
किन्तु जुलाहा लगा रह गया, रंगरेजिन से बात में
बाँट दिये ना जाने किसने, सब के सब खैरात में
साँसों के करघे पर.....
जब-जब ऊषा अंगड़ाती है, जब-जब कोयल गाती है
लगता है मेरे गीतों को, मेरी याद सताती है
अनजाने, अगणित गालों को, जब आँसू सहलाते हैं
तब ओठों पर मेरे ही तो, गीत तडप कर आते हैं
शामिल हो न सके बेचारे, फागुन की बारात में
बाँट दिये ना जाने किसने, सब के सब खैरात में
साँसों के करघे पर.....
कुछ तो हाथ लगे अम्बर के, कुछ ले डाले नदियों ने
चुरा लिए चकवी ने थोड़े, छिपा लिये कुछ सदियों ने
कुछ मौसम ने माँग लिये हैं, छीन लिये कुछ कलियों ने
कुछ पी डाले कोयलिया ने, बीन लिये कुछ अलियों ने
घोल दिये हैं कुछ चन्दा ने, परिमल और प्रपात में
बाँट दिये ना जाने किसने, सब के सब खैरात में
साँसों के करघे पर.....
जिनने मेरे गीत लुटाये, राम उन्हें सौ साल रखे
जिस सरगम ने उन्हें सराहा, खुदा उसे खुशहाल रखे
यूँ तो चाँद-सितारोंवाला अम्बर भी कंगाल है
मेरा अवढरदानी करघा, बेहद मालामाल है
किरणें तक झोली फैलातीं, मेरे द्वार प्रभात में
बाँट दिये ना जाने किसने, सब के सब खैरात में
साँसों के करघे पर.....
इन्हें डुबाकर धोये मैंने, अतल प्यार के पानी में
सोचा था ये खूब फबेंगे, सपनों भरी जवानी में
लेकिन सपनोंवाला यौवन, अँसुओं ने ही धो डाला
यामिनियों से जो पाया था, ऊषाओं में खो डाला
बिखर गया हूँ शबनम जैसा, नन्दन और निशात में
बाँट दिये ना जाने किसने, सब के सब खैरात में
साँसों के करघे पर.....
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कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज निलय, बालाघाट
प्रथम संस्करण - 1100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण पृष्ठ - मोहन झाला, उज्जैन
मुद्रक - लोकमत प्रिंटरी, इन्दौर
प्रकाशन वर्ष - (मार्च/अप्रेल) 1963
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