‘वंशज का वक्तव्य’ की पहली कविता
यह संग्रह, राष्ट्रकवि रामधरी सिंह दिनकर को समर्पित किया गया है।
अब
अब छँटे तो छँटे नारों का कुहासा
और अब बदले तो बदले मेरे बेटे की भाषा
राम जाने
किसने झटक दी है शेर की वह खाल
बिलकुल मेरी ही तरह सीधा सादा
निकल आया है भीतर से ।
स्कूल से घर
और घर से स्कूल
.पटरी उखाड़ना और शीशे तोड़ना तो ठीक,
.अब नहीं तोड़ता खुद अपने ही बगीचे के फूल ।
हो न हो
अब यह फिर कोई न कोई नेट या
आर्यभट्ट बनायेगा
और हो न हो
अपने बेसुरे सुर से
सामवेद नहीं तो
कोई मेरा ही बेतुका गीत गायेगा ।
एकाध नये पोकरण में फिर से करेगा धमाका
हो न हो, यह फिर से
उजलायेगा दूध ।
इसकी माँ का
लौट रहा हए मेरा विश्वास कि
अव यह वैसा नहीं करेगा
जैसा कि कल तक कर रहा था
और आश्वस्त कर देगा मुझे कि
मैं इसका बाप इससे
यूँ ही डर रहा था ।
‘आशा अमर है’
मुहावरा बुरा नहीं है
पहिली बार देख रहा हूँ कि
आज इसके हाथ में कोई
चाकू या छुरा नहीं है ।
पता नहीं
यह कैसे सुधर गया है
समझ नहीं पा रहा हूँ कि
इसका भूत
बोतल में कैसे उतर गया है!
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और अब बदले तो बदले मेरे बेटे की भाषा
राम जाने
किसने झटक दी है शेर की वह खाल
बिलकुल मेरी ही तरह सीधा सादा
निकल आया है भीतर से ।
स्कूल से घर
और घर से स्कूल
.पटरी उखाड़ना और शीशे तोड़ना तो ठीक,
.अब नहीं तोड़ता खुद अपने ही बगीचे के फूल ।
हो न हो
अब यह फिर कोई न कोई नेट या
आर्यभट्ट बनायेगा
और हो न हो
अपने बेसुरे सुर से
सामवेद नहीं तो
कोई मेरा ही बेतुका गीत गायेगा ।
एकाध नये पोकरण में फिर से करेगा धमाका
हो न हो, यह फिर से
उजलायेगा दूध ।
इसकी माँ का
लौट रहा हए मेरा विश्वास कि
अव यह वैसा नहीं करेगा
जैसा कि कल तक कर रहा था
और आश्वस्त कर देगा मुझे कि
मैं इसका बाप इससे
यूँ ही डर रहा था ।
‘आशा अमर है’
मुहावरा बुरा नहीं है
पहिली बार देख रहा हूँ कि
आज इसके हाथ में कोई
चाकू या छुरा नहीं है ।
पता नहीं
यह कैसे सुधर गया है
समझ नहीं पा रहा हूँ कि
इसका भूत
बोतल में कैसे उतर गया है!
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‘वंशज का वक्तव्य’ की दूसरी कविता ‘दीप बेला’ यहाँ पढ़िए
‘भावी रक्षक देश के’ के बाल-गीत यहाँ पढ़िए। इस पन्ने से अगले गीतों की लिंक, एक के बाद एक मिलती जाएँगी।
‘गौरव गीत’ की कविताएँ यहाँ पढ़िए। इस पन्ने से अगली कविताओं की लिंक, एक के बाद एक मिलती जाएँगी।
‘दरद दीवानी’ की कविताएँ यहाँ पढ़िए। इस पन्ने से अगली कविताओं की लिंक, एक के बाद एक मिलती जाएँगी।
वंशज का वक्तव्य (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - ज्ञान भारती, 4/14, रूपनगर दिल्ली - 110007
प्रथम संस्करण - 1983
मूल्य 20 रुपये
मुद्रक - सरस्वती प्रिंटिंग प्रेस, मौजपुर, दिल्ली - 110053
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - ज्ञान भारती, 4/14, रूपनगर दिल्ली - 110007
प्रथम संस्करण - 1983
मूल्य 20 रुपये
मुद्रक - सरस्वती प्रिंटिंग प्रेस, मौजपुर, दिल्ली - 110053
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती।
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
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