यह संग्रह, राष्ट्रकवि रामधरी सिंह दिनकर को समर्पित किया गया है।
आज ठहरो
हर दिशा खामोश है
शायद उजाला आयेगा
चन्द किरनें भेंट में
शायद हमें दे जायेगा
किन्तु मितवा!
रात काली
और गहरी हो न जाये
और ये गूँगी दिशाएँ
ठेठ बहरी हो न जायें
इसलिए तुम
आज ठहरो
सोच लो
मत दो बधाई
हो न हो यह रस्म साली
कल करा दे जग हँसाई।
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वंशज का वक्तव्य (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - ज्ञान भारती, 4/14, रूपनगर दिल्ली - 110007
प्रथम संस्करण - 1983
मूल्य 20 रुपये
मुद्रक - सरस्वती प्रिंटिंग प्रेस, मौजपुर, दिल्ली - 110053
शायद उजाला आयेगा
चन्द किरनें भेंट में
शायद हमें दे जायेगा
किन्तु मितवा!
रात काली
और गहरी हो न जाये
और ये गूँगी दिशाएँ
ठेठ बहरी हो न जायें
इसलिए तुम
आज ठहरो
सोच लो
मत दो बधाई
हो न हो यह रस्म साली
कल करा दे जग हँसाई।
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वंशज का वक्तव्य (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - ज्ञान भारती, 4/14, रूपनगर दिल्ली - 110007
प्रथम संस्करण - 1983
मूल्य 20 रुपये
मुद्रक - सरस्वती प्रिंटिंग प्रेस, मौजपुर, दिल्ली - 110053
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती।
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
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