बारा मासी

श्री बालकवि बैरागी के, मालवी कविता संग्रह 
‘चटक म्हारा चम्पा’ की चौथी कविता

यह संग्रह श्री नरेन्द्र सिंह तोमर को समर्पित किया गया है।




बारा मासी

कोयल तू मत बोल बावरी
म्हारो जी यूँ घबरावे
कदी पियाजी घर आवे

माघ उतरवा लागो पाँचम, लाल गुलाबी आई
चल्या गया परदेस पियाजी, हाय कठे परणाई
होरी कण के संग खेलूँ , फागण म्हाने न्‍ही भावे
कदी पियाजी घर आवे

चेत चली गणगोर पूजवा, गोठण करे ठिठोली
नेण झरामर बरसन लागा, भींजी म्हारी चोली
आई आखातीज वेशाखाँँ, देख तावड़ो इतरावे
कदी पियाजी घर आवे
 
जेठ, जेठ के संग जेठाणी, जागे आधी राताँ
रात चाँदनी कन्‍त-कामणी, करे कणाँ कई वाताँ
अषाढ़ मैं उड़ खबराँ लाजे, कूण पिया ने भरमावे
कदी पियाजी घर आवे

की जे पियूजी थाँकी याद में, हाँवण लागे हूको
हींचूँ कण के संग अकेली, या वेराँ मत चूको
होकड़ली या वीजू म्हाने, मास भादवे डरपावे
कदी पियाजी घर आवे

लंका जीती और रामजी, घरे जानकी लावे
शरद पूनम की रात चाँदणी, दन आसोजी जावे
काती दीवो दिवारी को, लागे न्‍ही बुझ-बुझ जावे
कदी पियाजी घर आबे

अगहण आयो ठण्‍ड ठियारी, ठण्‍डी-ठण्‍डी लागे
लम्बी-लम्बी रात पोष की काटूँ चूल्हा आगे
नाचण ने जद जाणू कोयलिया, प्रीतम ने लारे लावे
कदी पियाजी घर आवे
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संग्रह के ब्यौरे 
चटक म्हारा चम्पा (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज प्रकाशन, 4 हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
मूल्य - 20 रुपये
चित्रांकन - डॉ. विष्णु भटनागर
प्रकाशन वर्ष - 1983
कॉपी राइट - बालकवि बैरागी
मुद्रक - विद्या ट्रेडर्स, उज्जैन

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