यह संग्रह, राष्ट्रकवि रामधरी सिंह दिनकर को समर्पित किया गया है।
एक-आध गाँधी
अच्छे भविष्य की आशा में
बुरे वर्तमान को जीना
बुरा ही नहीं, बहुत बुरा है।
मुश्किल है भुलाना अतीत को
और भी मुश्किल है रचना
कालातीत को।
जो नहीं है बुरे वर्तमान का आदी,
उसके लिए हमेशा जीवित है
एक-आध गाँधी।
पर यूँ क्षण-क्षण किसी गाँधी के सहारे जीना
क्षण-क्षण कड़ुवा घूँट पीना
जव तक गाँधी रहेगा
केवल नारा, केवल भाषण.
याने कि साधन
तब तक घुटता रहेगा उसका दम
वह तो फिर भी जी लेगा
पर मरते रहेंगे हम।
राम जाने वह बूढ़ा
प्राणों में कब तक पचेगा?
साँसों में मेंहदी जैसा
न जाने कब रचेगा?
आराध्य न जाने कब बनेगा साध्य?
कोई नहीं है प्रतिबद्ध
कोई नहीं है बाध्य।
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बुरे वर्तमान को जीना
बुरा ही नहीं, बहुत बुरा है।
मुश्किल है भुलाना अतीत को
और भी मुश्किल है रचना
कालातीत को।
जो नहीं है बुरे वर्तमान का आदी,
उसके लिए हमेशा जीवित है
एक-आध गाँधी।
पर यूँ क्षण-क्षण किसी गाँधी के सहारे जीना
क्षण-क्षण कड़ुवा घूँट पीना
जव तक गाँधी रहेगा
केवल नारा, केवल भाषण.
याने कि साधन
तब तक घुटता रहेगा उसका दम
वह तो फिर भी जी लेगा
पर मरते रहेंगे हम।
राम जाने वह बूढ़ा
प्राणों में कब तक पचेगा?
साँसों में मेंहदी जैसा
न जाने कब रचेगा?
आराध्य न जाने कब बनेगा साध्य?
कोई नहीं है प्रतिबद्ध
कोई नहीं है बाध्य।
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‘भावी रक्षक देश के’ के बाल-गीत यहाँ पढ़िए। इस पन्ने से अगले गीतों की लिंक, एक के बाद एक मिलती जाएँगी।
वंशज का वक्तव्य (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - ज्ञान भारती, 4/14, रूपनगर दिल्ली - 110007
प्रथम संस्करण - 1983
मूल्य 20 रुपये
मुद्रक - सरस्वती प्रिंटिंग प्रेस, मौजपुर, दिल्ली - 110053
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