क्या करें

 


श्री बालकवि बैरागी के काव्य संग्रह 
‘वंशज का वक्तव्य’ की सातवीं कविता

यह संग्रह, राष्ट्रकवि रामधरी सिंह दिनकर को समर्पित किया गया है।






क्या करें

जब अँधेरा मुँह चिढ़ाये
दिल जलाये दीप का
और घोंघे कर उठें
उपहास उजली सीप का
तब बताओ
मोतियों के अंशधर हम क्या करें?
और दिनकर के
दहकते वंशधर हम क्या करें?
अंश उजले वंश का
तब तिलमिला कर जल उठे
और उसकी लौ लपट बन
तम जलाने को जुटे
उस समूचे रोष का ही
पुण्य यह उजियार है
मन्युमय उस दीप का
शायद यही आधार है।
मीत!
इस आधार को,
इस मन्यु को आकाश दो
युद्धरत हो तुम सतत्
ऐसा प्रबल आभास दो।
तुम विजेता हो, अजित हो, इष्ट हो
ऐसा कहो ललकार कर
लिख चुका जय गीत मैं
तुम आ न जाना हार कर ।
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वंशज का वक्तव्य (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - ज्ञान भारती, 4/14,  रूपनगर दिल्ली - 110007
प्रथम संस्करण - 1983
मूल्य 20 रुपये
मुद्रक - सरस्वती प्रिंटिंग प्रेस, मौजपुर, दिल्ली - 110053



यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।

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