आई नई हिलोर


श्री बालकवि बैरागी के पाँचवें काव्य संग्रह 
‘गौरव गीत’ का दसवाँ गीत

.....मैं काँग्रेस के मंच से हिन्दी मंच पर आया हूँ। सो, मैंने उस महान् संस्था के उपकार को नहीं भूलना चाहिये। मेरी नैतिकता मुझे इसके लिये हमेशा आगाह करती रहती है। .....मुझे लोकप्रियता देने में इन गीतों का बहुत बड़ा योगदान है। पूरे देश के आर-पार मेरा एक विशाल परिवार इन गीतों ने तैयार किया है। .......न इनका कोई साहित्यिक मूल्य है न इनमें कोई साहित्यिक बात ही है। फिर भी ये पुस्तकाकार छपे हैं। .....मेरे लिये यह जरूरी था कि इनको छपा कर आप तक पहुँचाऊँ। 



आई नई हिलोर

                                      आई नई हिलोर जवानों
                                      आई नई हिलोर

- 1 -

                                       मिटी गुलामी की अँधियारी
                                       बिखर गई है पूनम प्यारी
                                       आजादी का ज्वार उठा है,
                                        देखो चारों ओर
                                        आई नई हिलोर.....

- 2 -

                                        चला काफिला, बजा नगारा
                                        बुला रहा है हमें किनारा
                                        बँधी रहे बस, इस तरह से,
                                        अनुशासन की डोर
                                        आई नई हिलोर.....

- 3 -

                                        निश्चित है मंजिल तक जाना
                                        तूफानों से क्या घबराना
                                        सत्य, अहिंसा का सेनानी,
                                        कब पड़ता कमजोर
                                        आई नई हिलोर.....

- 4 -

                                        बाधाओं को गले लगाओ
                                        इसी तरह मुस्काते जाओ
                                        गीत हमारे ही गायेगी,
                                        कल की मंगल भोर
                                        आई नई हिलोर.....

- 5 -

                                        आज विषमता से लड़ना है
                                        लिये तिरंगा ही बढ़ना है
                                        क्या नहीं कर सकते बोलो
                                        सैंतालीस करोड़
                                        आई नई हिलोर.....
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गौरव गीत - काँग्रेस सेवादल के लिए रचित गीतों का संग्रह
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - पिया प्रकाशन, मनासा (म. प्र.)
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन
कॉपी राइट - ‘कवि’ (बालकवि बैरागी)
प्रथम संस्करण - 1100 प्रतियाँ,
प्रकाशन वर्ष - 1966
मूल्य - 1.50 रुपये
मुद्रक - रतनलाल जैन,
पंचशील प्रिण्टिंग प्रेस, मनासा (म. प्र.) 
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यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।


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